Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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सम्य०
स०टी०
॥२१७॥
मुहपरियणो रण्णो । दट्टणं तीइ मइप्पगरिसमइविम्हिओ जाओ ॥७८ ॥ संकोयंती निवमुहकमलं जणयस्स नयणकुमुयाई । उल्लासंती सचं सा जाया चंदलेहत्व ॥ ७९ ॥ तत्तो रायकुलाओ जियगासी वण्णणिजमइपसरा । पिउणो गिहंमि पत्ता पचक्खसरस्सई बाला ॥ ८०॥ तं विन्नाणं तीए अवमाणं अत्तणो वियाणंतो । विम्हयविसायपडिओ चिंतइ राया कहं नडिओ? ॥८१॥ अन्नदिणे तं कन्नं राया मग्गेइ पाणिगहणत्थं । सिट्ठीवि भीयभीओ धूयं पुच्छेइ परमत्थं ॥ ८२ ॥ सा हरिसपूरियंगी जणयं पइ एरिसं भणइ वयणं । उज्झिय भयं विवाह करेसु मह निवइणा सद्धिं ॥ ८३ ॥ दुललियनिवेण समं चंदणसारेण चंदलेहाए। अइसयमहसवेणं कारविओ झत्ति वीवाहो ॥ ८४ ॥ अहिणवपासायंमी ठावित्ता तं भणेइ भूमिंदो । जइविहु धुत्ती तहविहु सिद्वीसुए ! वंचियासि मए॥ ८५॥ संभलसु मह पइन्नं आरंभेऊण अजदिवसाओ । संलावं नो काहं सह तुमए रागरत्तमणो ॥८६॥ साहइ सावि निसामसु सामिय! छलसार मज्झवि पइन्नं । ताऽहं नूणं चंदणतणया वंचणचणा भुवणे ॥८७॥ जं असणं उच्छिटुं निजं जिमावेमि तूलियं सिजं । वाहावेमि अवस्सं खंधे तं अंकदासुव ॥८८॥ (जुयलं) तवयणानलजलिरो सोहग्गपमुहगुणगणजुयंपि। राया तं परिखिवई दोहग्गवईण मज्झमि ॥ ८९॥ तत्तो जिणवरपूर्य कुणमाणी पवरकुसुमगंधेहिं । सोहग्गकप्पतरुवरपमुहतवे सा कुणइ बहवे ॥९०॥ अन्नदिणे आपुच्छिय रायं तवचरणउजमणहेउं । पिउणो गिहमि पत्ता तवसोसियतणुलया बाला॥९॥ अइकिसदेहं सिट्ठी ठावित्तु तं निउच्छंगे। विल
॥२१॥
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