Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ माँ सरस्वती श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग ग्रंथ ही उपलब्ध है । अगर हम सब ऐसे ही उदासीन (सुषुप्त) रहेंगे, तो शायद ४५ में से भी अब कम होने में देरी नही लगेगी । नही ! हम ऐसा हरगीज होने नही देंगे । हम भी हमारे महापुरुषों की तरह हमारी यह धरोहर तन-मन-धन और जीवन सर्वस्व अर्पण-समर्पण करके भी सुरक्षित रखेंगे । तो, आज से आप भी इन महापुरुषों की तरह सच्चे ज्ञान-प्रेमी बन जाओ और शास्त्रों में अपना नाम अमर बना दो । क्याँ, आपको पता है ? जैसे हमारी हाथ की उँगलीयाँ पाँच है, उसी प्रकार परमेष्ठि-५, महान तीर्थ-५, प्रतिक्रमण -५, आचार-५, महाव्रत- ५, इंद्रिय-५, शरीर-५, कल्याणक-५ और ज्ञानके प्रकार वह भी ५ ही है । १० १) मतिज्ञान, २) श्रुतज्ञान, ३) अवधिज्ञान, ४) मनः पर्यवज्ञान और ५) केवलज्ञान | व्याख्या १) मतिज्ञान-पाचों इंद्रियों और मन द्वारा पदार्थ / वस्तु का जो ज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान कहते है । मतिज्ञान के २८/३२/३४० भेद है । २) श्रुतज्ञान-सुनने से अथवा पढने लिखने से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते है । श्रुतज्ञान के १४/२० भेद है। (यह दोनों ज्ञान संसार के छोटे-बडे प्रत्येक जीवमात्र को अल्प-अ -अधिक मात्रा में होते ही है ।) ३) अवधिज्ञान-इंद्रियों की साहायता / अपेक्षा बिना रूपी द्रव्य पदार्थ का मर्यादापूर्वक जो ज्ञान होता है, उसे अवधिज्ञान कहते है । इसके ६ भेद है । विशेष- २४ तीर्थंकर भगवान के कुल मिलाकर (१,३३,४००) १ लाख, ३३ हजार और चार सो अवधिज्ञानी मुनिभगवंत थे । ४) मनः पर्यवज्ञान-ढाई द्वीप में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के मनोगत भाव (मन के विचार) को जानने का जो ज्ञान होता है, उसे मनः पर्यवज्ञान कहते है । इसके २ भेद है । विशेष-२४ तीर्थंकर भगवान के कुल मिलाकर (१,४४,५९१) १ लाख,

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122