Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 116
________________ १०६ माँ सरस्वती ..... श्री सरस्वती साधना विभाग हे भद्रे ! गर्जना करते हुए काले बादलों के समान श्याम वर्णी, विशाल देहधारी, गजेन्द्र के विस्तीर्ण गंडस्थल को आलिंगन करने के समान उसपर आरूढ़ होकर पृथ्वी पर विजय प्राप्त करने हेतु जिनकी अश्व एवं पायदलों की सेनायें कमर कसकर तैयार हो रही हों, ऐसा शत्र भी, हे माता ! आपके चरण युगल रूपी पर्वतों का आश्रय लिये हुए, आपके सेवकों को किसी भी प्रकार की पीडा नहीं पहुँचा सकता । मांसासू-गस्थि रस शुक्र सलज्ज मज्जा । स्नायूदिते वपुषि पित्त मरूत् कफाद्यैः ।। रोगानलं चपलि तावयवं विकारै । स्त्वन्नाम कीर्तन जलं शमयत्य शेषम् ।।३६॥ हे माता शारदा ! मांस, रक्त, अस्थि, रस, वीर्य, (लज्जाशील) मज्जा (चरबी) एवं स्नायु उन सात धातुओं से बने शरीर में उत्पन्न हुए पित, वायु और कफ के विकारों से शरीर के नाड़ी एवं श्वास तंत्र के अवयवों में व्याप्त व्याधि रूपी समस्त अग्नि को, आपका नाम कीर्तन रूपी जल शांत कर देता है । मिथ्या प्रवाद निरतं व्यधिकृत्य सूय । मेकान्त पक्ष कृत कक्ष विलक्षितास्यम् । चेतो ऽस्तभीःस परि मर्दयते द्विश्रितॆ । त्वन्नाम नागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥३७।। हे भद्रे ! जिस पुरुष के हृदय में आपके नामरूपी 'नागदमनी' (सर्प को वश में करने वाली जड़ी) हो, वह निर्भय चित्त वाला होकर, असत्य प्रलाप (झुठ बोलने) के विषय में अत्यंत आसक्त, विशेष इर्ष्यालु और एकांतपक्ष को अंगीकार करनेवाले तथा विलक्षण शरीर धारी दुर्जनरूपी सर्प को चूर्ण (नाश) कर देता है अथवा वश में कर लेता है | प्राचीन कर्म जनिता वरणं जगत्सु । मौढ्यं मदाढ्य दृढ मुद्रित सान्द्र तन्द्रम् ।। दीपांशु पिष्टमयि ! सद्मसु देवि ! पुंसाम् । त्वत् कीर्तनात् तम इवाशु भिदा मुपैति ।।३८||

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