Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 117
________________ माँ सरस्वती श्री सरस्वती साधना विभाग हे कल्याणी ! हे देवी ! जिन मनुष्य के अपने पिछले पूर्वकृत कर्मोंसे वर्तमान में उत्पन्न ज्ञानावरणादि कर्मो के आवरण से आच्छादित होने के साथ ही, उनके बढे हुए अभिमान के कारण, जिनके लिये मानो आलस्य धन का ही मूर्खता के रूप में मजबूत मुद्रण हुआ हो, दुनिया में ऐसे मनुष्य की मूर्खता का भी आपके नाम कीर्तन से, घरों में दीपक की रोशनी से दूर हुए अंधकार के समान नाश हो जाता है | १०७ साहित्य शाब्दिक रसामृत पूरितायां । सत्तर्क कर्कश महोर्मि मनोरमायाम् ।। पारं निरंतर मशेष कलन्दिकायां । त्वत् पाद पङ्कज वना श्रयिणो लभन्ते ||३९॥ हे देवी सरस्वती ! आपके चरण कमल रूपी वन का निरंतर आश्रय लेने वाले, काव्यादिक साहित्य एवं व्याकरण के रसामृत से परिपूर्ण तथा विद्वान पंडितों के तर्क रूपी कठोर एवं आनंद की कल्लोलों द्वारा मनोहर समस्त विद्याओं में पारंगत हो जाता है । संस्थै रूपर्यपरि लोक मिलौकसो ज्ञा । व्योम्नो गुरुज्ञ कविभिः सह सख्य मुच्चैः ॥ अन्योऽन्य मान्य मितिते यदवैमि मात । स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति ||४०|| हे माता सरस्वती ! इस मृत्युलोक वासी पंडित जन आपका स्मरण करने से, सभी प्रकार से त्रास रहित होकर, नक्षत्रों से युक्त आकाश में उपर रहे हुए बृहस्पति, बुध एवं शुक्र आदि ग्रहों मे रहे हुए देवरूपी मनुष्यों से भी परस्पर अतिमान्य मित्रता को प्राप्त करते हैं। (अर्थात यहां के मानव की वहां के देवों के साथ एवं वहां के देवों की यहां के मानवों के साथ मित्रता हो जाती है ।) देवा इयन्त्यजनि मम्ब ! तव प्रसादात् । प्राप्नो त्यो प्रकृति मात्मनि मानवीयाम् || व्यक्तं त्वचिन्त्य महिमा प्रतिभाति तिर्यङ् । • मर्त्या भवन्ति मकर ध्वज तुल्य रूपाः ॥४१॥

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