Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ १६ माँ सरस्वती श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग तथा व्याकुलता की मनोवृत्ति आदि का निराकरण होता है । ४. मन शांत और प्रफुल्लित होता है । ५. एकाग्रता बढती है, कार्यक्षेत्र में सफलता की प्राप्ती होती है | ६. अभ्यास में मन केंद्रिभूत होता है | ७. मस्तिष्क के स्नायु शक्तिशाली बनते है । ८. सिरदर्द तथा अनिद्रा का रोग दूर होता है। अंगुठे के उपर की जगह पिच्युटरी ग्रंथी केंद्र है । उसे दबाने से मैत्री, करुणा, अभय, स्थिरता, ऋजुता वगैरे शांत भाव प्रगट होने लगते है । ज्ञानमुद्रा करके मस्तिष्क पर पीले रंग का ध्यान जप करने से स्मृती तथा ज्ञान का विकास होता है । साथ ही स्नायु मंडल शक्तिशाली बनते जाते है । उससे अध्ययन में आलस, तंद्रा, निद्रा वगैरे से वाचक अप्रभावित रहते है । सावधानियाँ ज्ञानविकास के इच्छुकों के लिये तीव्र खट्टा, चटपटा , अतिउष्ण तथा अति शीत पदार्थों का सेवन सर्वथा वर्ण्य बताया है । पानपराग, सुपारी, गुटका , तमाखु, इ. व्यसनों के सेवन से भी वे अपने को दूर ही रखें । टेबल, कुर्सी, पाट आदिपर बैठकर पैर को अनावश्यक रीतसे हिलाना नहीं चाहिये । दुसरों की निंदा, इर्षा तथा घृणा से दूर रहें । ज्ञान का अहंकार कभी न करे । ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय हेतु ज्ञान और ज्ञानियों का आदर करें, बहुमान करें, उनके प्रति सदा विनयभाव रखें । विद्यार्थी के पंच लक्षण काकचेष्टा बक ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च । अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम् ।। १) कौवे की तरह चेष्टा करना-यानि रटना, २) बगुले जैसा ध्यान-एकाग्र चित्त होना, ३) कुत्ते जैसी गहरी नींद, किंतु थोडीसी आवाज में उठ जाना ४) कम खानेवाला एवं ५) घर से दुर अर्थात् गुरुकुल वास में रहनेवाला-यह पांच विद्यार्थी के लक्षण है। इतनी शक्ति हमें देना माता ! मनका विश्वास कमजोर हो ना... हम चले नेक रस्ते में लेकिन, भुलकर भी कोई भुल हो ना...

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122