Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 25
________________ माँ सरस्वती श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग पूरे दिन में मुद्रायें कम से कम ४८ मिनिट होनी चाहिये । सुबह शाम १५/१५ मिनिट मुद्रा कर सकते है । ध्यानमें रहे कि भोजन के बाद ३० मिनिट तक मुद्रा न की जायें । • १५ तथापि, श्वास या गॅस की तकलिफ दूर करने हेतु भोजन के बाद वायु मुद्रा की जा सकती है। मुद्राएं पद्मासन, वज्रासन और ध्यान दरम्यान करने से अधिक लाभकारी होती है । पद्मासन, वज्रासन करने में कोई दिक्कत हो, तो अन्य कोई भी आसन में की जा सकती है । उपासना या साधना में वृद्धि हेतू जिन मुद्राओंका प्रयोग करना आवश्यक है, वे मंत्र - दिशा-आसन तथा समय के ध्यान के साथ की जाये, तो अधिक लाभकारी होती है । मुद्राओं से अलग अलग तत्त्वों में परिवर्तन, विघटन, अभिव्यक्ति और प्रत्यावर्तन होके, तत्त्वों का संतुलन हो जाता है, जिससे स्वास्थ्य का लाभ और वृद्धि होती है । प्रस्तावना चेतन का एक विशिष्ट गुण है, ज्ञान । ज्ञान ही जीव और निर्जीव (अजीव) पदार्थों को पृथक् करता है । ज्ञान का विकास ही व्यक्ति को सामान्य से विशिष्ट बना देता है । ज्ञान के उपलब्धी के निम्न दो साधन है । १. अभ्यास एवं ज्ञानावरणीय कर्मक्षय इन्द्रिय तथा मन द्वारा विकसित होनेवाले ज्ञान को मतिज्ञान कहते है । वही ज्ञान जब अन्य लोगों को समझने की क्षमता रखता है, तब श्रुतज्ञान बन जाता है । स्मृति और ज्ञान को विकसित करने हेतू जिन मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है, उन्हे ज्ञानमुद्रा या चिन्मय मुद्रा कहते है । परिणाम १. ज्ञान का विकास होता है । २. स्मरणशक्ति का विकास होता है । ३. स्वभाव में परिवर्तन आता है । जिद्दीपन, गुस्सावृत्ति, अस्थिरता, क्रोध,

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