Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 29
________________ माँ सरस्वती १९ श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग प्राणायम के लिये शुरू मे पूरक, रेचक और कुंभक करें । नित्य ३ से ६ महिने के अभ्यास के बाद आंतरकुंभक किया जा सकता है । लोम-विलोम, उज्जयी, भस्त्रिका , शीतली ऐसे प्राणायाम के अनेक प्रकार है । विशेष जानकारी उसके ज्ञाता से प्राप्त करें । ज्ञानसाधना याने क्या ? साधना का अर्थ है कुछ पाने का प्रयत्न । ज्ञानसाधना का अर्थ है, ज्ञान प्राप्ती करने हेतू किया हुआ पुरुषार्थ । ज्ञान दो प्रकार के होते है | व्यवहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान । व्यवहारिक ज्ञान-जिस ज्ञान द्वारा बुद्धि, पसंदगी, चतुराई आदि विकास होती है, वह है व्यवहारिक ज्ञान । आध्यात्मिक ज्ञान-आत्मा और कर्म का सम्बन्ध जानना, जीव-अजीव का भेद आदि जानकर पूर्णता में पहुंचने (मोक्षप्राप्ती) मदद रूप होने वाला ज्ञान है, अध्यात्मिक ज्ञान । ज्ञानसाधना हेतू जरूरत है, स्वस्थ शरीर और मन । 'शरीर माद्यं खलु धर्मसाधनम्। चुंकी , शरीर ही धर्मसाधना का साधन है, आरोग्यमय शरीर होना अत्यंत जरुरी है । साथ साथ मन की शुद्धता और निर्मलता ज्ञान प्राप्ति के लिए अत्यंत साहायक बनती है । योगद्वारा तन मन की तंदुरूस्ती हटयोग के आसन, प्राणायम, मुद्रा, षक्रिया और अष्टांग योगराजयोग के यम, नियमादि अंग, तन-मन के दुरुस्ती और संतुलन मे बहुत ही लाभदायक है । आसनों के अभ्यास से शरीर की संपूर्ण निरोगीता और प्राणायम द्वारा मन की एकाग्रता प्राप्त की जा सकती है । शरीर मे जो ९ प्रकारकी विविध प्रणालीया है, उनका कार्य व्यवस्थित हो और प्रणालियो में अंतस्थ संतुलनं हो, तो कोई भी प्रकार का रोग होने की संभावना ही नही रहती । योग से इन प्रणालियोंका संचालन खुब व्यवस्थित एवं सरल हो सकता है और हर साधना सिद्धि में रुपांतरित हो सकती है ।

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