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माँ सरस्वती
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श्री सम्यगज्ञानोपासना विभाग
योग और ज्ञानसाधना। योगासन :
शरीर के सुखपूर्वक स्थिती को आसन कहते है । आसन की पूर्ण अवस्था मे पहुंचने और वहाँ से वापिस आने के लिये शरीर की सुयोग्य हलन चलन बहुत जरुरी है । पूर्ण अवस्था में पहुंचकर कुछ समय के लिये स्थिर रहना ही आसन है । इस स्थिती मे शरीर, मन और श्वास का सुमेल होता है।
'घेरंड संहिता के अनुसार जीवों की जितनी योनी, उतने ही आसन के प्रकार याने ८४ लाख प्रकार है । उनमे ८४ आसन महत्व के है और उन में भी ३२ आसनों को विशेष बताये गये है।
इन आसनों का तीन प्रकार से वर्गीकरण किया गया है । १. ध्यानात्मक आसन. २. संवर्धनात्मक आसन और ३. शिथिली करणात्मक आसन
१. ध्यानात्मक आसन बैठकर किये जाते है । इनमे रिढ की हड्डी सीधी रहती है, और पैरों की स्थिती अलग अलग ।
पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन आदि ध्यानात्मक आसन है ।
२. संवर्धनात्मक आसन पवन मुक्तासन, भुजंगासन, पर्वतासन, ताडासन, सर्वांगासन इत्यादी शरीर के विविध स्थिती के संवर्धनात्मक आसन है।
३. शिथिलीकरणात्मक आसनों मे शवासन यह प्रमुख आसन है। | प्राणायामः प्राण आयाम + (नियमन) = प्राणायाम |
श्वास के संयम, (नियमन) से चित्तवृत्ति का निरोध होता है । प्राणायाम द्वारा स्थुल रीति से शरीर पर और सुक्ष्म रीति से मनपर प्रभाव पड़ता है। प्राणायाम करते समय
१. श्वास धीमा और दीर्घ लेवे । २. श्वास छोडने मे, श्वास लेने से दुगुना समय लगे । ३. श्वास लेते वक्त नाभी के निचला भाग बाहर न आवे |