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माँ सरस्वती
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श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
ग्रहणशील व्यक्तित्व कैसे बनाए ?
वृक्ष लगाना हो और फल प्राप्त करना हो, तो जमीन खोदकर उसमें से कंकर हटाने पडते है, खाद डालना पडता है, बीज बोना पडता है पानी देना पडता है, तथा अन्य आवश्यक सुरक्षाओं का प्रबन्ध करना पडता है । तो ही वृक्ष का बडा होना तथा फल प्राप्त होना संभव है ।
कोई बड़ा और सुंदर भवन बनाना हो, तो भी भवन का नक्षा बनाना पडता है, जमीन समतल बनानी पडती है, नक्षानुसार नीव की रेखायें जमीनपर खिंचनी पडती है, पाया खोदना पडता है, आवश्यक सामग्री जुटानी पडती है, कॉन्ट्रेक्टर को काम सौंपना पडता है, इंजिनीयर-आर्किटेक्ट के निर्देषानुसार रेती, सिमेंट, स्टील आदि उपयोग में लाने पडते है । सही तरीके से दिवारें खडी करनी पडती है, प्लॉस्टर सफाईसे करना पडता है, सिमेंट-काँक्रेट काम होने के बाद निर्धारित काल तक पानी देना पडता है, फर्श की तरफ ध्यान देना पडता है। रंग देना पडता है, तो ही सही भवन बन सकता है । विद्यार्थीओं को पेन, पुस्तक, नोटबुक देने पर भी, उन को अच्छी ट्युशन लगाने पर भी खूब लिखने-पढने को कहने पर भी, गृहपाठ देते हुए भी तथा अन्य अनेक कोशिशे करने पर भी अपेक्षित परिणाम आते नहीं । उसका अर्थ ही यह है कि इतना सबकुछ करने पर भी कुछ महत्त्व का निश्चित ही कम पड़ता है, और वह है ग्रहणशीलता (Catch up power...)
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• जिस प्रकार चलने के लिए पैर में शक्ति होना जरुरी है, खाने के लिए भूख लगी होनी चाहिये, सोना हो तो, निंद आनी चाहिए, याद रखने के लिये तीव्र स्मरण शक्ति चाहिये, वैसे ही पढने के लिए समग्र व्यक्तिमत्व ग्रहणशील होना चाहिये । इसके लिए शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक, आत्मिक ऐसी सज्जता प्राप्त करने की जरुरत होती है ।
१. शारीरिक
१. अभ्यास करते समय सीधा बैठना चाहिये । झुककर बैठने से रीढ की हड्डी की स्थिती टेढी होती है, उससे शरीर और बुद्धि दोनों को नुकसान पहुंचता है । सिर झुकाकर लिखने से भी नुकसान पहुंचता है । अतः जब