Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ माँ सरस्वती ४० श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजकृत श्री नवपदकी पूजा में से अन्नाण संमोह तमोहरस्स, नमो नमो नाण दिवायरस्स पंचप्पयारस्स गारगरस्स, सत्ताण सव्वत्थ पयासगस्स || होये जेहथी ज्ञान शुद्ध बोध, यथावर्ण नासे विचित्रावबोध, तेने जाणिये वस्तु षड्द्रव्यभावा, न हुये वितत्था निजेच्छा स्वभावा । होये पंच मत्यादि सुज्ञानभेदे, गुरुपास्तिथी योग्यता तेह वेदे, वळी ज्ञेय हेय उपादेय रूपे, लहे चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपे ॥ भव्य नमो गुण ज्ञानने, स्वपर प्रकाशक भावेजी । परजाय धर्म अनंतता, भेदाभेद स्वभावेजी || जे मुख्य परिणति सकल ज्ञायक, बोध भाव विलच्छना, मति आदि पंच प्रकार निर्मल, सिद्ध साधन लच्छना, स्याद्वाद संगी तत्त्व रंगी, प्रथम भेदाभेदता, सविकल्पने अविकल्प वस्तु, सकल संशय छेदता, 1 • भक्षाभक्ष न जे विण लहिये, पेय अपेय विचार, कृत्य अकृत्य न जे विण लहिये, ज्ञान ते सकल आधार रे, भविका सिद्धचक्र पद वंदो. १ • प्रथम ज्ञान ने पछी अहिंसा, श्री सिद्धांते भाख्युं, ज्ञानने वंदो ज्ञान न निंदो ज्ञानीए शिवसुख चाख्युं रे... भविका २ • सकल क्रियानुं मूल जे श्रद्धा, तेहनुं मूल जे कहिये, तेह ज्ञान नित नित वंदीजे, ते विण कहो केम रहिये रे... भविका ३ • पंच ज्ञानमांहि जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक जेह, दीपक परे त्रिभुवन उपकारी, वळी जेम रविशशि मेह रे... भविका ४ • लोक उर्ध्व, अधो, तिर्यग, ज्योतिष, वैमानिक ने सिद्ध, लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, तेह ज्ञान मुज शुद्ध रे... भविका ५ • ज्ञानावरणी जे कर्म छे, क्षय उपशम तस थाय रे, तो हुए एहि ज आतमा, ज्ञान अबोधता जाय रे, वीर जिनेश्वर उपदिशे, तुमे सांभळजो चित्त लांइ रे, आतम ध्याने आतमा, रिद्धि मले सवि आयी रे... . महावीर ...

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122