Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan
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माँ सरस्वती
४१
श्री ज्ञानकी स्तुति
• निव्वाण मग्गे वरजाण कप्पं, पणासिया सेस कुवाइ दप्पं । मयं जिणाणं सरणं बुहाणं, नमामि निच्चं तिजगप्पहाणं बोधागाधं सुपद पदवी नीर पूरा भिरामं, जीवा हिंसा-विरल-लहरी-संगमा गाह देहं,
चूलावेलं गुरुगम मणि संकुलं दूर पारं सारं वीरागम जलनिधिं सादरं साधु सेवे
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
"
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अर्हद् वक्त्र प्रसूतं, गणधर रचितं, द्वादशांगं विशालं, चित्रं बह्वर्थ युक्तं मुनिगण वृषभै, र्धारितं बुद्धिमद्भिः,
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मोक्षाग्र द्वार भूतं, व्रत चरण फलं, ज्ञेय भाव प्रदीपं, भक्त्या नित्यं प्रपद्ये, श्रुत मह मखिलं, सर्व लोकैक सारम् जिन जोजन भूमि, वाणीनो विस्तार, प्रभु अर्थ प्रकाशे, रचना गणधर सार, सो आगम सुणतां, छेदी जे गति चार, प्रभु वचन वखाणी, लइये भवनो पार ||४||
सम्यग् ज्ञान वंदना
• कर्मो खपावी घातीया, केवल लही प्रभु शुभ समे, खोले खजानो गूढ हितकर, मोह- मिथ्या तम शमे, आपे त्रिपद गणधारने, करे चौद पूरव सर्जना, सद्ज्ञानना शुभ चरणमां, करूं भावथी हुं वंदना ... • छे शास्त्र दिपक सांरीखा मोहांधकार घने वने,
॥२॥
हे शास्त्र दिवादांडी सम मिथ्या महोदधि तारणे, पद-पद परम पावन शुचि अनेकांतवाद निदर्शना, • आतम स्वरुपने शोधवा सद्ज्ञान छे साचो सखा, स्व-पर प्रकाशक जे कह्यं, आत्मिक गुण अमुलखा, मति-श्रुत-अवधिज्ञान, मन-केवल विभेदो ज्ञानना • ज्ञानी खपावे चीकणा कर्मो जे श्वासोश्वासमां, क्रोड़ों वर्षे ना छुटे अज्ञानना अंधारमा,
ज्ञाने हीणा पशु सम कह्यां, किश्या कहु गुण ज्ञानना सद्ज्ञानना...
सद्ज्ञानना...
सद्ज्ञानना...

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