Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 108
________________ ९८ माँ सरस्वती श्री सरस्वती साधना विभाग हे सती ! हे वरदात्री माता सरस्वती ! आपका अपूर्व ज्ञान युक्त सारस्वतरूप निश्चित रूपसे एक नही, अनेक है। जैन दर्शनानुसार आप साधु स्वरूपी हो एवं शैव मतानुसार आप ही भवानी रूप हो । इसी प्रकार विभिन्न दर्शनों के अनुसार आप ही भिन्न भिन्न स्वरूपी हो ।। माता सरस्वती के अलग अलग नाम १) भारती, २) सरस्वती, ३) शारदा, ४) हंसगामिनी, ५) विद्वन्माता ६) वागीश्वरी ७) कुमारी ८) ब्रह्मचारिणी ९) त्रिपुरा १०) ब्राह्माणी ११) बृह्माणी १२) ब्रह्मवादिनी, १३) वाणी, १४) भाषा १५) श्रुतदेवी १६) गो.. मन्ये प्रभूत किरणौ श्रुतदेवि दिव्यौ । त्वत् कुण्डलौ किल विडम्बयत स्तमाया । मूर्तम् दशा मविषयं भवि भोश्च पूष्णो । यद् वासरे भवति पाण्डु पलाश कल्पम् ।।१३।। श्रुत अर्थात् ज्ञान की अधिष्ठात्री, हे देवी सरस्वती ! आपके अद्भुतकिरणों से युक्त दिव्य कर्ण कुंडलो के तेज के आगे सूर्य एवं नक्षत्रपति चंद्रमा के मंडलों की आभा भी निःस्तेज हो जाती है । इसी कारण सूर्य मंडल रात्रि में नेत्रों से ओझल हो जाता है एवं चंद्र मंडल भी दिन में खांखरे के पके हुए पत्तों के समान निस्तेज और फीका लगता है। ये व्योम वात जल वह्नि मृदां चयेन । कायं प्रहर्ष विमुखां स्त्वद्दते श्रयन्ति । जाता नवाम्ब ! जडताध गुणा नणून मां । कस्तान् निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ? ||१४|| हे माता ! आप मेरी रक्षा किजिये क्योंकि, आकाश, पवन, जल, अग्नि एवं पृथ्वी रूपी पंचतत्व से बने इस शरीर का मूर्खतादिक दोष आश्रय लेते हैं और शरीर में उत्पन्न हो कर सदबुद्धि की वृद्धि में निरोधक बनते हैं। ऐसे मूर्खतादिक दोषों को शरीर से पूर्णरूप से दूर करने में केवल आपके सिवाय अन्य कोई भी समर्थ नहीं है। अस्मा दृशां वर मवाप्त मिदं भवत्याः । सत्या व्रतोरू विकृतेः सरणिं न यातम् ।।

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