________________
१०२
माँ सरस्वती
... श्री सरस्वती साधना विभाग हे सुन्दर शरीर वाली माँ सरस्वती ! संयमादिक गुणों द्वारा मोक्षपद को साधनेवाली हे साध्वी ! स्वर्ग एवं पृथ्वी पर जन्म एवं मरण से पूर्णतः मुक्त करने वाले मोक्ष मार्ग का , भगवान श्री ऋषभदेव से भी पहले आपने उपासना करके पृथ्वीपर विस्तार किया था । बादमें हुए केवलज्ञानी भगवंतो द्वारा, कृपा करके बतलाया हआ शिवपद का कल्याणकारी भाग भी वही है | मेरे मतया विचार से इसके सिवाय दूसरा कोई भी मोक्ष मार्ग नहीं है।
दीव्यद्दया निलय मुन्मिष दक्षि पद्मं । पुष्यं प्रपूर्ण हृदयं वरदे ! वरेण्यं ॥ त्वद् भूधनं सघन रश्मि महाप्रभावं । ज्ञान स्वरूप ममलं, प्रवदन्ति सन्तः ॥२४॥ .
हे वरदात्री माता शारदा ! आप खिले हुए कमल पुष्पों के समान नेत्रों वाली अथवा कमल नयना हो, अनेक सद्ग्रंथो से परिपूर्ण हृदयवाली हो, क्रीड़ा करती हुई कृपा के निवास स्थान रूपी अर्थात् अतिशय दयालु हो । अतः श्रेष्ठ किरणों से युक्त महाप्रभावशाली आपके वदन को ज्ञानी पंडित जन निर्मल ज्ञानी स्वरूप कहते हैं ।
कैवल्य मात्म तपसा ऽखिल विश्वदर्शि । चक्रे ययाऽऽदि पुरूषः प्रणयां प्रमायाम् ।। जानामि विश्व जननीति च देवते ! सा । व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमो ऽसि ॥२५॥
हे जगतमाता ! आपने सभी पुरुषों मे उत्तम अर्थात् पुरुषोत्तम, आदिपुरुष श्री ऋषभदेव को अपना स्नेही बनाया, जिन्होने स्वयं तपश्चर्या करके लोकालोक प्रकाशक अर्थात् समस्त ब्रह्मांड को करतल के समान देखनेवाले महामहिमा युक्त कैवल्यज्ञान को प्रमाण स्वरूप सिद्ध किया था । अतः हे देवि ! जिन्हे मैं जगत की माता अर्थात् जगदम्बा के रूप में जानता हूँ, वे स्पष्ट रूप से केवल आप ही हैं।
सिद्धान्त एधि फलदो बहुराज्य लाभो । न्यस्तो यया जगति विश्व जनीन पन्थाः ॥