Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 52
________________ माँ सरस्वती ४२ श्री सरस्वती साधना विभाग C श्री सरस्वती साधना विभाग मन्त्र साधना की पंचसूत्री ध्यान का विशिष्ट महत्व है। ध्यान की धारा पर चढे बिना प्रगति साध्य नही होती | सच्चे साधक के लिये स्वाध्याय एवं ध्यान की प्रवृत्ति जरुरी है । स्वाध्याय से सच्चा मार्ग समझता है, तो ध्यान से उसका अमल होता है... ध्यान, मन्त्र साधना का अनिवार्य भाग है । मन्त्र साधना का पहला अंग है- मन्त्र देवता की पूजा । वह विविध प्रकार से करनी चाहिये । मन्त्र साधना का दूसरा अंग है- स्तोत्र पाठ । पूजा से भी कित्येक गुना फल स्तोत्र में है । इसलिये, सुंदर, भाववाही स्तोत्रों द्वारा मन्त्र देवता की स्तुति करनी चाहिये । स्तोत्र पाठ अलग अलग राग में करना चाहिये । मन्त्र साधना का तृतीय अंग है- जप साधना । स्तोत्र से भी करोड गुना फल जप में है, अतः मूल मन्त्र का जाप नियत प्रमाण में अवश्य करना चाहिये । निश्चित्त संख्या का नियम धारण करके जप करना चाहिये । मन्त्र साधना का चतुर्थ अंग है- ध्यान । ध्यान, जाप से ज्यादा फलदायी है । हररोज थोडे समय के लिये क्यों न हो, मन्त्र देवता का ध्यान अवश्य करना चाहिये । मन्त्र साधना का पांचवा अंग है- लय । ध्यान से भी ज्यादा फल 'लय' में है । अपने मन की समस्त प्रवृत्तियों को मन्त्र देवता में लय (विसर्जित) कर देनी चाहिये । इस प्रकार करने से कालान्तर में 'सिद्धी' प्राप्त की जा सकती है । मंत्र विशारदों ने मन्त्र साधना को पाँच विभागों में विभक्त की है । . उन्होंने उसका स्वरुप इस प्रकार माना है । १) अभिगमन : मन्त्र साधना हेतु निश्चित किये हुए स्थान पर जाकर उसकी शुद्धि करनी चाहिये । वे २) उपाधन : मन्त्र साधना हेतु जो भी उपकरणों की जरुरत होती है, बटोर लेवे (इकट्ठी करे) । ३) इज्या : भूतशुद्धि, प्राणायाम तथा न्यासपूर्वक मन्त्र देवता की विविध उपचारों द्वारा पूजा करनी चाहिये । ४) स्वाध्याय : मन्त्र का विधिपूर्वक जप करना चाहिये । ५) योग : मन्त्र देवता का ध्यान करना चाहिये । 'आत्म-सिद्धी' तक पहुंचने के लिये इन साधनों का उपयोग आवश्यक है ।

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