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माँ सरस्वती
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श्री सरस्वती साधना विभाग
श्री सरस्वती भक्तामर की महिमा श्री सरस्वती भक्तामर श्री धर्मसिंहसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा विरचित है, इस भक्तामर में मा सरस्वती महादेवी का सुंदर वर्णन है । इस भक्तामर के स्मरण से अज्ञान रूप अंधकार नाश होता है, मन प्रसन्न बनता है, मुर्खता नाश होती है, बुद्धि सहस्त्रमुखी गंगा एवं चंद्र की कला के जैसी बढती है, बुद्धि सहस्त्रमुखी गंगा एवं सहस्रमुखी चंद्र की कला के जैसी बढती है, पित्तविकार-वायु-आदि व्याधिओं नाश होती है | तर्क-न्याय आदि विद्या के स्वामी बनते है | ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है, जिसको ज्ञान न याद होता हो, बुद्धि कम हो, याद रहता न हो, भूल होती हो, उन महानुभावोंको इस सरस्वती भक्तामर के मंगलपाठ से बहुतही लाभ होता है |
महाचमत्कारी श्री सरस्वती-भक्तामर स्तोत्र भक्तामर भ्रमर विभ्रम वैभवेन । लीलायते क्रम सरोज युगो यदीयः ।। निघ्न न्नरिष्ट भय भित्तिम भीष्ट भूमा । वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ।।१।। मत्वैव यं जनयितारम रंस्त हस्ते । या संश्रितां विशद वर्ण लिपि प्रसूत्या ॥ ब्राह्मीम जिह्म गुण गौरव गौरवर्णां । स्तोष्ये किला हमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् (युग्मम्) ||२||
सरोवर मे उत्पन्न होने वाले कमल पुष्प पर गुंजन करके अपनी प्रीति प्रदर्शित करनेवाले भ्रमर समूह के समान जिनके युगल चरणकमल अनेकानेक भक्तसुर-सुरेन्द्रों द्वारा भक्तिभाव से सेवित हैं तथा जिनका आश्रय, मनुष्यों के संसार से उत्पन्न कर्मों के लेपसे व्याप्त उपद्रव एवं भयरुपी दिवारो का नाश करने और वांछित विषयों का आधार भूत है, ऐसे विशाल ज्ञान के धारक तथा सामान्य केवलियों में मुख्य प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव को अपना जन्मदाता मानकर उन्ही के हाथों में क्रीडा करते हए, निर्मल प्रकाश