Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ माँ सरस्वती श्री सरस्वती साधना विभाग एवं लिपी रूपमें अपनी उत्पत्तिद्वारा, उन्हीका आश्रय लेनेवाले अनंतज्ञान और दर्शन रुप सरल गुण के गौरवसे गौर वर्ण अर्थात् उज्जवल प्रकाश से युक्त श्रुतदेवता की मैं स्तवना करता हूं । ९४ ब्रम्ही लिपी- प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेवजी ने अपनी सांसारिक अवस्था में राज्यारुढ़ होने के बाद अपनी पुत्री ब्राह्मी को, अपने मनोविचारों को लिखकर व्यक्त करने हेतु दाहिने हाथ में लिखी जानेवाली अक्षर लिपी का ज्ञान दिया । सबसे पहले राजकुमारी ब्राह्मी द्वारा ही इस अक्षर लिपी का प्रचार प्रसार होने से यह लिपी ब्राह्मीलिपी के नाम से प्रसिद्ध हुई । " मातर् ! मतिं सति ! सहस्त्र मुखीं प्रसीद । नालं मनीषिणी मयीश्वरि ! भक्तिवृत्तौ || वक्तुं स्तवं सकल शास्त्रनयं भवत्या । मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ? ॥३॥ हे माता ! उत्तम शीलवती होने से आप साध्वी हो अथवा अक्षर रूप लिपी के शाश्वतपन के कारण आप सती हो । वरदानादिक प्रदान करनेवाली होने के कारण आप ईश्वरी हो । नैगमादिक सात प्रकारके नयरूपी समस्त शास्त्रों के मार्ग को एकदम ग्रहण करने या जानने के साथ ही अपने अभीष्ट देवता के गुण रूपी स्तोत्रगान की इच्छा रखने वाला एवं भक्ति करने की प्रवृत्ति में तत्पर मुझे आप सहस्त्र मुखी बुद्धि प्रदान करो अर्थात् मुझे हजार प्रकार की प्रज्ञा से विभूषित करो क्योंकि आपश्री द्वारा मान्य मनुष्य ही अनेक शास्त्रों का ज्ञाता ( जानकार) होने में एवं अपने इष्ट देव की स्तुति करने में समर्थ होता है । अन्यथा नहि... त्वां स्तोतु मत्र सति ! चारू चरित्र पात्रं । कर्तुं स्वयं गुणदरी जल दुर्विगाह्यम् ॥ एतत् त्रयं विडुप गूहयितुं सुराद्रिं । को वा तरीतुमलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ? ॥४॥ हे सती ! मनोहर गुणों से परिपूर्ण आपकी स्तुति करना उतना ही कठिन है जितना कि, लाख योजन की उंचाई वाले मेरू पर्वतका आलिंगन

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122