Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

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Page 100
________________ माँ सरस्वती ९०) श्री सरस्वती साधना विभाग आशा निराशा हृदये प्रगटी रही शी, ---- . -.. श्रद्धा सदाय मनने समजावती शी । विश्वास धैर्य धरतो मन मान मारुं, ते आवशे प्रगट रूप धरी ज न्यारूं ।।३५।। . अंधार घोर नभमां चमके सीतारा, शी स्वप्नमां प्रगटती शुचि तेज धारा । सुगंध दिव्य सघळे प्रसरी हवामां, शुं ब्रम्हनाद प्रगटे सघळी दिशामां ॥३६।। . ज्योती स्वरूप प्रगटी तुजने निहाळी, छुपी रही हृदयमां नव केम जाणी । अज्ञान तिमीर समुहथी दूर थाता, ज्योती स्वरूप प्रगटी बहू वर्ष जाता ||३७|| . भावे विभोर बनतो तुजने निहाळी, सिंधू समी ललीत सुंदर ने दयाली । ज्योत्स्ना समु धवल सुंदर रूप तारूं, संसारना सकल रूप थकीज न्यारं ॥३८॥ . मांगु सुबुद्धी विमला शुभ भाव आपो, माया ममत्व जग बंधन सर्व कापो । सहु राग-द्वेष मनना हर पाप तापो, मुक्ति तणो परम उज्ज्वल मार्ग आपो ||३९।। देवी वदे कवि ! सुणो जन निती त्यागी, लक्ष्मी तणी मनुजने मन प्यास जागी । त्यागी शके न ममता मरता सुधीमां, केवी मति मन गति समजी शके ना ||४०॥ • रे ! राग द्वेष जनने अति प्रिय लागे, ना ओकता शितलता मन तेनुं मागे । प्रीति मनुष्य करतो अति बंधनोमां, मुक्ति रही सकल केवल वातुओमां ।।४१।।

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