Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan
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८६
माँ सरस्वती
श्री सरस्वती साधना विभाग • तुं रिद्धी-सिद्धी बल बुद्धी प्रताप आपे.. . .. .
दारिद्र दुःख भय संकट सर्व कापे । तेजस्विनी तप तणो तुज तेज न्यारूं, तुं शारदा सरस्वती तुज नाम प्यारुं ||७||
श्री शारदा वदननी सुरभि सुनेरी, चोरे हवा वदननी खुशबू अनेरी | तो आवती विचरती वन वाटिकामां,
व्यापे सुवास वन-पुष्प समी हवामां ||८|| निशांत मां विचरती शुभ शारदा ज्यां, केवी मधूर मनमोहक शी हवा त्यां । सौंदर्यता वनतणी निरंखी विचारे, आवी उभी विचरती सरिता-किनारे ।।९।। • हेमाद्रि पूर्ण निरखं मन ओ ज मांगे,
कैलाशमां विचरवा मन भाव जागे । त्यांथी उडी गगनमा तरती हवामां,
हेमाद्रिने निरखती सघळी दिशामां ||१०|| . हेमाद्रिना धवल शिखर भव्य शोभे,
कासार हंस कमलो मनने प्रलोभे । पंखी पशु पवन सौ निज मस्ती धारे, नाचे कलापी निज पिच्छ कला प्रसारे ||११|| . तुषार पुष्प नभथी वरसी रह्यां ज्यां,
केवी सुहे शशी समी धवली धरा त्यां । मीठा मधुर जलना झरणां वहे ज्यां,
शी यौवने मद भरी सरिता वहे त्यां ।।१२।। धुजावती वदन शीतल त्यां हवा शी, भींजावती जलभरी नभ वादळी शी । ज्यां सूर्य ताप अति कोमलता बतावे, शी रोशनी रवि तणी रस रूप लावे ||१३||

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