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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग है । इसके लिये हल्के स्वर में बोलना, टेप, टी. व्ही. बंद रखना, दरवाजे खिडकियाँ बंद करते वक्त धीरेसे बंद करना, खुर्सी आदि कर्कश आवाज करते न घसीटणा, चप्पल आदि का फट-फट आवाज न करना आदि तरफ ध्यान देना जरुरी है ।
• टी.वी. उपर के चित्रहार जैसे कार्यक्रम विद्यार्थीओं के लिये बहुत ही खतरनाक होते है । माता-पिता इस बारे में अवश्य ध्यान रखे ।
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• सदा सात्विक आहार ग्रहण करे । तले हुए अथवा मसालेदार पदार्थों पर रोक लगावे । विद्यार्थीओं की एकाग्रता टिकी रहने के लिए कपडा, गहेना और खाने पीने का आकर्षन कम करना चाहिए । शिक्षक तथा मातापिता मिलके मौजशोक और फॅशन को मर्यादा में रखने की उसे प्रेरणा देवे । • प्रेरणादायी प्रसंग, महापुरुषों के चरित्र आदि मनोबल बढाने में साहाय्यक बनते है | सदगुणों की प्रेरणा, जीवन का कोई लक्ष्य रखना, ये मनोबल बढाने के आलंबन हो सकते है ।
३. मन को अनुकुल बनाने का सरल सच्चा उपाय है, योगाभ्यास | क्षमता के अनुसार बचपन में ही योगाभ्यास सीखना, मन का विकास करता है । ४. बौद्धिकः
बुद्धि ही तो शिक्षा का, ज्ञान का धाम है । उसके बिना पढा ही नही जा सकता । ग्रहणशीलता बनाने के लिए कुछ मूलभूत बाते समझने की आवश्यकता है ।
१. विद्यार्थ्यो का दप्तर का बोजा तथा 'मजुरी' कम करनी चाहिए ।
'स्व' अध्ययन जरुरी है । छोटे-बडे विद्यार्थी खुद ही अभ्यास करें, उसमें बड़े लोग साहाय्य करें । लेसन तैयार करके देनेवाली मम्मी तथा परिक्षा में पास करने के लिए प्रयत्न करनेवाले पप्पा उस बालक के सबसे बड़े दुश्मन है । जब तक विद्यार्थी स्वयं अपने बुद्धि का उपयोग नहीं करेगा, उसकी बुद्धि ग्रहणशील नहीं बन सकेगी ।
२. अभ्यास क्रम के बाहर की बहुत सारी योग्य पुस्तकों का वांचन बुद्धि को परिपक्व, विशाल तथा सूक्ष्म बनाती है । भवन जितना उंचा बांधना होता है, उतना उसका पाया गहरा तथा मजबूत स्तर पर लेना चाहिये और