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माँ सरस्वती
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श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
श्री सम्यगज्ञान का स्तवन ।। श्री जिनवरने प्रगट थयुं रे, क्षायिक भावे ज्ञान | दोष अढार अभावथी रे, गुण उपन्या ते प्रमाण रे, भविया.. वंदो केवल ज्ञान, पंचमी दिन गुण खाण रे...भविया, वंदो० ॥१॥ अनामीना नामनो रे, किश्यो विशेष कहेवाय । एतो मध्यमां वैखरी रे, वचन उल्लेख ठराय रे...भविया० ||२|| ध्यान टाणे प्रभु तुं होये रे, अलख अगोचर रूप | परा पश्यंति पामीने रे, काइ प्रमाणे मुनि भूप रे...भविया० ।।३।। छती पर्याय जे ज्ञाननां रे, ते तो नवि बदलाय । ज्ञेयनी नवनवी वर्तना रे, समयमां सर्व जणाय रे...भविया० ||४|| बीजा ज्ञान तणी प्रभा रे, ओहमां सर्व समाय । रवि प्रभाथी अधिक नहीं रे, नक्षत्र गण समुदाय रे...भविया० ।।५।। गुण अनंता ज्ञाननां रे, जाणे धन्य नर तेह । विजय 'लक्ष्मी सूरी' ते लहे रे, ज्ञान महोदय गेह रे...भविया० ।।६।।
सिम्यगज्ञान की थोय मतिश्रुत इन्द्रिय जनित कहीए, लहीए गुण गंभीरोजी, आतमधारी गणधर विचारी, द्वादश अंग विस्तारोजी, अवधि मनः पर्यव केवल वळी , प्रत्यक्ष रूप अवधारोजी, ओ पंच ज्ञानकुं वंदो पूजो, भविजनने सुखकारोजी ।।१।।
वाह ! क्या खूब कहाँ दुःख से यदि छुटना है तो सुख की आशा छोड दो मौत से यदि बचना है तो, जन्म का धागा तोड दो । आत्मानंद की गिरी का स्वाद, अगर चखना चाहते हो, तो । सम्यग्ज्ञान के हथोडे से, मोह का नारीयल फोड दो...
जी हाँ!! अज्ञानी रोते है, जो नहिं है, उसे जोड़ने के लिए ज्ञानी रोते है, जो है, उसे छोड़ने के लिए...
HARYA
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