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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग जमीन उपर बैठकर अभ्यास करना हो, तो सुयोग्य उंचाई का टेबल सामने रखकर उस पे नोटबुक रखकर लिखे अथवा पुस्तक रखकर पढे ।
• पैर लटका कर बैठने के बदले पालखी पुरकर (पलाठी मारकर अर्थात् सुखासन में) बैठे । इस से कमर के उपर के अवयवों को जादा खून तथा प्राणिक शक्ति का पुरवठा (Supply) होता है, जो ग्रहण शक्ति बढाने में अत्यंत साहय्यकारी होता है ।
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• बैठने के लिए आरामदायी आसन का होना जरुरी है। (सूती अथवा ) उनी आसन उपयोग में लावे, ठंडे जमीन पर कभी भी नहीं बैठना चाहिये । • बूट, मोजे (सॉक्स) पहनकर कभी भी पढाई न करे । पवित्रता एवं आरोग्य की द्रष्टि से भी वह अयोग्य है । भारत जैसे गरम प्रदेश में बूट-मोजे पहनना उचित नहीं है, उससे पैर तल को खुली हवा मिलने में अवरोध भी होता हैं ।
• घुटने, कमर और खंधे पर अनैसर्गिक भार न आए, इस प्रकार खडे रहने की आदत रखनी चाहिये ।
उत्तर देने के लिए जब खड़ा होना पडता है, तब दोनों हाथ पिछे एक दूसरे में गुंथे हुए या आगे एक दूसरे में गुंथे हुए अथवा बाजू में सीधे रखे | अन्य किसी भी प्रकार से रखना उचित नहीं है ।
• सीधे खडे रहकर सामने देखकर बोलने की आदत शारिरिक तथा बौद्धिक आरोग्य में सुधार लाती है। इससे आत्मविश्वास जागृत होता है, तथा प्रभाव बढता है ।
मुह पे ओढकर अथवा गंदे कपड़ों में नही सोना चाहिये । • ठंड के दिनों में उनी एवं गरमी के दिनों में सूती कपडे पहनने चाहिये । शरीर सिकुड के, जेब मे हाथ डालकर, खंधे आगे झुकाकर चलना नहीं चाहिए ।
२. सोने, बैठने, खडे रहने के आदत के साथ साथ आरोग्य की तरफ भी ध्यान रखना चाहिये । विद्यार्थी का पेट साफ होना चाहिये, उन्हें कब्ज नही होना चाहिये, जल्दी सोने की और जल्दी उठने की आदत होनी चाहिये । उन्हें पूर्ण तथा शांत निंद मिलनी चाहिये । विद्यार्थीओं को शुद्ध घी, दूध, फल, कम मसालेवाला खुराक जरुरी होता है । इससे सात्त्विक प्रवृत्ति