Book Title: Samyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Author(s): Harshsagarsuri
Publisher: Devendrabdhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ माँ सरस्वती १३ श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग - आपको बुद्धि क्यों चाहिए ? म पृथ्वी पर रही हुई सभी जीव-सृष्टि में सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य है । मनुष्य के दो विभाग है-सज्जन और दुर्जन । मनुष्य को सज्जन या दुर्जन उसकी अपनी बुद्धि बनाती है । बुद्धि अगर सुबुद्धि है तो वह वरदान है । बुद्धि अगर दुर्बुद्धि है, तो वह अभिशाप है । जिस बुद्धि में स्वार्थ छलकता है वह दुर्बुद्धि है और जिस बुद्धि में परमार्थ-परोपकार छलकता है वह सुबुद्धि है | सबुद्धि युक्त मनुष्य ही सज्जन कहलाता है और दुर्बुद्धि युक्त मनुष्य दुर्जन... संस्कृत में बडा मजेदार श्लोक हैविद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां पर-पीडनाय । खलस्य साधो विपरीत मेतज, ज्ञानाय-दानाय च रक्षणाय || दुर्जन मनुष्य की (बुद्धि) विद्या विवाद के लिए, संपत्ति अभिमान के लिए तथा शक्ति (सत्ता) अन्य जीवों को पीडा देने के लिए ही होती है । जबकि, सज्जन की बुद्धि सम्यग्ज्ञान एवं आत्मविकास के लिए, संपति दान के लिए, एवं शक्ति (सत्ता) अन्य जीवों की रक्षा एवं परोपकार के लिए ही होती है । आज के वर्तमान जगत में चारों ओर जो अनाचार-भ्रष्टाचार-व्याभिचारहिंसाचार की ज्वालामुखी फैली है, उसका मूल कारण मात्र अज्ञानता एवं दुर्बुद्धि ही है । अपने सुख एवं स्वार्थ के खातिर, मनुष्य कौनसा पाप नहि कर रहा यही आश्चर्य है। ___ भले , आज विज्ञान बहोत आगे बढ़ रहा है । लेकिन, वह ज्ञान किस काम का जिसने मात्र पूरे विश्वमें विनाश और तबाह मचा दिया है, दु:ख और अशांति की आग लगाई है, मानसिक-आर्थिक-शारीरिक-पारिवारिक-धार्मिक भावनाओं को भारी नुकसान पहोंचाया है, ८०% लोगों की नींद हराम कर दी है, प्राणी-प्राणी के बीच दिवाल खडी कर दी है, ऐसा विनाशकारी ज्ञान भला किस कामका ? तभी तो किसी चिंतक को लिखना पडा "यह सच है कि आज विज्ञान का तुफान आया है, क्योंकि हर कदम-कदम पर आदमी, आदमी से घबराया है। हंसी आती है यह सोचकर, क्या करेगा वह चाँद पर जाकर; जो इस धरति पर भी, रहना सीख न पाया है...?'' "कितना बदल गया इन्सान" को देखकर अब यही प्रार्थना करे-सबको 'सन्मति' दे भगवान...सबको 'सद्गति दे भगवान...

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122