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माँ सरस्वती
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श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
ज्ञानसाध
साधना और मुद्रा विक
मुद्रा चिकित्सा कहते है कि-जिन पांच तत्त्वों से यह ब्रह्मांड बना है, उन्ही पांच तत्त्वों से अपना शरीर भी बना है । अपनी पांच उंगलियाँ इन्हीं पंचतत्त्वों का प्रतिनिधीत्व करती है। उंगली का नाम
तत्त्व का नाम Thumb अंगुठा
Fire-Sun अग्नि . Index तर्जनी
Air-Wind वायु Centre मध्यमा
Ether-Space आकाश Ring अनामिका Earth
पृथ्वी Little कनिष्ठा
Water
जल हाथ में से निरंतर विशेष प्रकार की प्राण उर्जा , विद्युतशक्ति, इलेक्ट्रीक तरंग और जीवन शक्ति निकलती है । विभिन्न उंगलियों की मुद्राएं शरीर में स्थित चेतन शक्ति केंद्रों पर रिमोट कंट्रोल बटन समान कार्य करती है।
| मुद्रा करने के सामान्य नियम ___ पाँच तत्त्वों के संतुलन से स्वास्थ्य बना रहता है । अंगूठे के टोक पर
अन्य उंगलि का टोक रखने से उंगलिका तत्त्व बढता है और उंगलि का टोक अंगुठे के मूल पर लगाने से वह तत्त्व घटता है। मुद्रा स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, रोगी-निरोगी कोई भी कर सकता है । मुद्रा दोनों हाथों से करनी चाहिये । बाये हाथ की मुद्रा से शरीर के दाहिने भाग को और दाहिने हाथ की मुद्रा से शरीर के बाये भाग को लाभ होता है । मुद्रा करते वक्त उंगलियों का अंगुठे के साथ सहज स्पर्श होना जरुरी है । अंगुठे से हलका सहज दबाव देना चाहिये, जबकि अन्य उंगलियाँ सीधी तथा एक दुसरे से जुडी रहनी चाहिये । किसी कारणवश अन्य उंगलियाँ सीधी न रह सके, तो आरामदायक स्थिति में रखें | धीरे धीरे बिमारी हटके उंगलियाँ सीधी रहकर सही मुद्रा हो सकती है ।