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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग तथा व्याकुलता की मनोवृत्ति आदि का निराकरण होता है । ४. मन शांत और प्रफुल्लित होता है । ५. एकाग्रता बढती है, कार्यक्षेत्र में सफलता की प्राप्ती होती है | ६. अभ्यास में मन केंद्रिभूत होता है | ७. मस्तिष्क के स्नायु शक्तिशाली बनते है । ८. सिरदर्द तथा अनिद्रा का रोग दूर होता है।
अंगुठे के उपर की जगह पिच्युटरी ग्रंथी केंद्र है । उसे दबाने से मैत्री, करुणा, अभय, स्थिरता, ऋजुता वगैरे शांत भाव प्रगट होने लगते है । ज्ञानमुद्रा करके मस्तिष्क पर पीले रंग का ध्यान जप करने से स्मृती तथा ज्ञान का विकास होता है । साथ ही स्नायु मंडल शक्तिशाली बनते जाते है । उससे अध्ययन में आलस, तंद्रा, निद्रा वगैरे से वाचक अप्रभावित रहते है ।
सावधानियाँ ज्ञानविकास के इच्छुकों के लिये तीव्र खट्टा, चटपटा , अतिउष्ण तथा अति शीत पदार्थों का सेवन सर्वथा वर्ण्य बताया है । पानपराग, सुपारी, गुटका , तमाखु, इ. व्यसनों के सेवन से भी वे अपने को दूर ही रखें ।
टेबल, कुर्सी, पाट आदिपर बैठकर पैर को अनावश्यक रीतसे हिलाना नहीं चाहिये । दुसरों की निंदा, इर्षा तथा घृणा से दूर रहें । ज्ञान का अहंकार कभी न करे । ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय हेतु ज्ञान और ज्ञानियों का आदर करें, बहुमान करें, उनके प्रति सदा विनयभाव रखें ।
विद्यार्थी के पंच लक्षण काकचेष्टा बक ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च । अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम् ।। १) कौवे की तरह चेष्टा करना-यानि रटना, २) बगुले जैसा ध्यान-एकाग्र चित्त होना, ३) कुत्ते जैसी गहरी नींद, किंतु थोडीसी आवाज में उठ जाना ४) कम खानेवाला एवं ५) घर से दुर अर्थात् गुरुकुल वास में रहनेवाला-यह पांच विद्यार्थी के लक्षण है।
इतनी शक्ति हमें देना माता ! मनका विश्वास कमजोर हो ना... हम चले नेक रस्ते में लेकिन, भुलकर भी कोई भुल हो ना...