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________________ माँ सरस्वती १७ श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग विशिष्ट लाभदायी मुद्राए... Left १. ज्ञानमुद्रा तर्जनी के टोक पर अंगुठे का टोक लगाये , बाकी उंगलिया सीधी तथा एक दूसरे से जुडी रहनी चाहिये । • दाया / दाहिना → Right २. तत्त्वज्ञान मुद्रा : बाये हाथकी पृथ्वीमुद्रा (अंगुठा और अनामिका के टोक को जुडने से) और दाहिने हाथ की ज्ञान मुद्रा करके दोनों तरफ के घुटनों पर दोनो हाथ रखने से तत्त्वज्ञान मुद्रा बनती है | ३. अभयज्ञान मुद्रा दोनो हाथों की ज्ञानमुद्रा करके खभे (खंधे) के आजुबाजु में सिधी लाईन में हथेली दिखे, ऐसे हाथ सीधा रखने से यह मुद्रा बनती है | लाभ-इस मुद्रा से ज्ञानमुद्रा के समस्त लाभ के साथ ही निर्भयता प्राप्त होती है । मृत्यु तथा अन्य प्रकार के डर से मुक्त बनते है । ४. ज्ञान ध्यान मुद्रा दोनों हाथों से ज्ञान मुद्रा करके बाये हाथ के हथेली पर दाहिना हाथ रखें । पद्मासन या सुखासन करके नाभी के पास दोनों हाथ रखने से ज्ञान-ध्यान मुद्रा बनती है | लाभ : ज्ञान मुद्रा के समस्त लाभों के व्यतिरिक्त ध्यान में प्रगती के लिये सहायक । ५. ज्ञान वैराग्य मुद्रा दाहिना हाथ ज्ञानमुद्रा में हृदय के पास (आनंदकेंद्र-अनाहत चक्र) रखें और बाया हाथ ज्ञानमुद्रा में बाये घुटने पे रखने से ज्ञान वैराग्य मुद्रा बनती है । लाभ : ज्ञान मुद्रा के समस्त लाभों के साथ ही पापोदय के कारण संसार में रहते हुए भी वैरागी तथा निष्पाप जीवन में साहायक बनती है ।
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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