Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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सम्यग्दर्शन के लिये अरिहन्तदेव को पहिचानो
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अरिहन्तदेव अर्थात् शुद्ध आत्मा; जिसमें देह नहीं, जिसमें राग नहीं, जिसमें अपूर्णता नहीं - ऐसे शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा, वह अरिहन्त है; उन्हें पहचानने से देह से भिन्न, राग से भिन्न परिपूर्ण शुद्ध आत्मा अवश्य पहिचाना जाता है, अर्थात् सम्यग्दर्शन होता है और तभी से सच्चा जैनत्व होता है । इसलिए हे जीवो! तुम अरिहन्तदेव को पहिचानो । यहाँ श्रीगुरु उनकी पहचान कराते हैं
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I
श्री अरिहन्त भगवान को नमस्कार हो
॥ अरिहन्त भगवान अपने इष्टदेव हैं, इसलिए उनका स्वरूप भलीभाँति पहचानना चाहिए ।
॥ अरिहन्त भगवान का स्वरूप भलीभाँति पहचानने से आत्मा का सच्चा स्वरूप पहिचाना जाता है, क्योंकि अपने आत्मा का स्वरूप भी वास्तव में अरिहन्त भगवान जैसा ही है ।
अनादि काल से आत्मा में जो मिथ्यात्वभाव है, वह अधर्म है। इस आत्मा का स्वभाव, अरिहन्त भगवान जैसा ही, पुण्य-पाप से रहित है। उसे चूककर, पुण्य-पाप को ही अपना स्वरूप मानना, वह मिथ्यात्व है । उस मिथ्यात्व का नाश कैसे हो और सम्यक्त्व कैसे प्रगट हो ? उसका उपाय कहते हैं ।
– जो कोई जीव, अरिहन्त भगवान के आत्मा के द्रव्य
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