Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
148]
[सम्यग्दर्शन : भाग-4
से हाथ का हार दूर फेंककर अंजन चोर भागा..... और श्मशान में जा पहुँचा। थककर एक वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया; वहाँ एक आश्चर्यकारी घटना उसने देखी। वृक्ष के ऊपर छींका टाँगकर एक पुरुष उस पर चढ़-उतर रहा था और कुछ पढ़ भी रहा था। कौन है, यह मनुष्य और ऐसी अन्धेरी रात में यहाँ क्या करता है ?
[पाठक ! चलो, अंजन चोर को यहाँ थोड़ी देर खड़ा रखकर हम इस अनजान पुरुष का परिचय प्राप्त करें।]
अमितप्रभ और विद्युतप्रभ नाम के दो पूर्व भव के मित्र थे। अतिमप्रभ तो जैन धर्म का भक्त था, और विद्युतप्रभ अभी कुधर्म को मानता था। एक बार वह धर्म की परीक्षा के लिए निकला। एक अज्ञानी तपसी को तप करते देखकर उसकी परीक्षा करने के लिए उससे कहा; अरे बाबाजी! पुत्र के बिना सद्गति नहीं होती-ऐसा शास्त्र में कहा है, – यह सुनकर वह तपसी तो खोटे धर्म की श्रद्धा से वैराग्य छोड़कर संसार-भोगों में लग गया; यह देखकर विद्युतप्रभ ने उस कुगुरु की श्रद्धा छोड़ दी।
फिर उसने कहा कि अब जैन गुरु की परीक्षा करनी चाहिए। तब अमितप्रभ से उसका कहा – मित्र! जैन साधु परम वीतराग होते हैं; उनकी तो क्या बात ! उनकी परीक्षा तो दूर रही – परन्तु यह जिनदत्त नाम का एक श्रावक, सामायिक की प्रतिज्ञा करके अन्धेरी रात में इस श्मशान में अकेला ध्यान कर रहा है, उसकी तुम परीक्षा करो।
जिनदत्त की परीक्षा करने के लिए उस देव ने अनेक प्रकार से भयानक उपद्रव किए, परन्तु जिनदत्त सेठ तो सामायिक में पर्वत
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.