Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 190
________________ www.vitragvani.com 174] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 AGRA ६. स्थितिकरण-अङ्ग में प्रसिद्ध वारिषेण मुनि की कथा महावीर भगवान के समय में राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा राज्य करते थे। चेलनादेवी उनकी महारानी और वारिषेण उनका पुत्र था। वारिषेण के अति सुन्दर बत्तीस रानियाँ होते हुए भी वह बहुत वैरागी तथा आत्मज्ञान धारक था। ___ एकबार राजकुमार वारिषेण उद्यान में ध्यान कर रहे थे, इतने में विद्युत नाम का चोर एक मूल्यवान हार की चोरी करके भाग रहा था; उसके पीछे सैनिक भाग रहे थे। 'मैं पकड़ा जाऊँगा'-इस डर के कारण हार को वारिषेण के आगे फैंककर वह चोर छिप गया, राजकुमार को ही चोर समझकर राजा ने फाँसी की सजा दी, परन्तु जब बधिक ने राजकुमार पर तलवार चलायी, तब वारिषेण के गले में तलवार के बदले पुष्पों की माला हो गयी, तथापि राजकुमार तो मौनरूप से ध्यान में ही थे। ___ ऐसा चमत्कार देखकर चोर को पश्चाताप हुआ। उसने राजा से कहा कि मैं हार का चोर हूँ, मैंने ही हार की चोरी की थी, यह राजकुमार तो निर्दोष हैं। इस बात को सुनकर राजा ने राजकुमार से क्षमा माँगी और राजमहल में आने को कहा। __परन्तु वैरागी वारिषेणकुमार ने कहा – पिताजी ! इस असार संसार से अब जी भर गया है; राजपाट में कहीं भी मेरा मन नहीं लगता, मेरा चित्त तो एक चैतन्यस्वरूप आत्मा को ही साधने में Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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