Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 204
________________ www.vitragvani.com 188] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 साथ ले गए और पुत्र की तरह उसका पालन-पोषण करने लगे। भाग्यवान जीवों को कोई न कोई योग प्राप्त हो ही जाता है। वज्रकुमार युवा होने पर पवनवेगा नाम की विद्याधरी के साथ उसका विवाह हुआ और उसने बहुत से राजाओं को जीत लिया। कुछ समय बाद दिवाकर राजा की रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। अपने ही पुत्र को राज्य मिले, इस लालसा में वह वज्रकुमार से द्वेष करने लगी। एकबार वह गुस्से में बोली कि अरे! यह किसका पुत्र है ? यहाँ आकर मुझे व्यर्थ हैरान करता है। यह सुनते ही वज्रकुमार का मन उदास हो गया। उसे विश्वास हो गया कि मेरे सच्चे माता-पिता दूसरे हैं। अतः उसने विद्याधर से वास्तविक स्थिति जान ली। उसे ज्ञात हुआ कि मेरे पिता दीक्षा ग्रहण करके मुनि हो गए हैं। वह शीघ्र ही विमान में बैठकर मुनि के पास गया। __ध्यानस्थ सोमदत्त मुनिराज को देखकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ, उसका चित्त शान्त हुआ, विचित्र संसार के प्रति उसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और पिता के पास से मानों धर्म का उत्तराधिकार माँगता हो! – ऐसी परम भक्ति से वन्दन करके कहा – हे पूज्य देव! मुझे भी साधुदीक्षा दो! इस संसार में मुझे आत्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी सार नहीं लगता। दिवाकर देव ने उसे दीक्षा न लेने के लिए बहुत समझाया, परन्तु वज्रकुमार ने दीक्षा ही ग्रहण की; वे साधु होकर आत्मा का ज्ञान-ध्यान करने लगे और देश-देशान्तर में घूमकर धर्मप्रभावना करने लगे। एकबार उनके प्रताप से मथुरानगरी में धर्मप्रभावना की ____Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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