Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ www.vitragvani.com 190] [ सम्यग्दर्शन : भाग-4 कहा। अरे ! जैनधर्म के परम महिमा की उसे कहाँ खबर थी ? गाय और आक के दूध का अन्तर मन्दाध पुरुष क्या जानेगा ? जिनेन्द्र भगवान की रथयात्रा में विघ्न होने से उर्विलारानी को बहुत दुःख हुआ और जब तक रथयात्रा नहीं निकलेगी, तब तक के लिए अनशनव्रत ग्रहण करके वह वन में सोमदत्त और वज्रकुमार मुनि की शरण में पहुँची और प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभो ! जैनधर्म के ऊपर आये हुए संकट को आप दूर करें। रानी को बात सुनकर वज्रकुमार मुनिराज के अन्तर में धर्मप्रभावना का भाव जागृत हुआ । इसी समय दिवाकर राजा आदि विद्याधर वहाँ मुनि को वन्दन करके आए; वज्रकुमार मुनि ने कहा - राजन ! तुम जैनधर्म के परम भक्त हो और मथुरा नगरी में जैनधर्म पर सङ्कट आया है, उसे दूर करने में तुम समर्थ हो । धर्मात्माओं को धर्म की प्रभावना का उत्साह होता है, वे तन से - मन से - धन से शास्त्र से - ज्ञान से - विद्या से सर्वप्रकार से जैनधर्म की वृद्धि करते हैं और धर्मात्माओं के कष्टों को दूर करते हैं । दिवाकर राजा धर्मप्रेमी तो थे ही, और मुनिराज के उपदेश से उन्हें प्रेरणा मिली, शीघ्र ही मुनिराज को नमस्कार करके उर्विलारानी के साथ समस्त विद्याधर माथुरा आये और धामधूमपूर्वक जिनेन्द्रदेव की रथयात्रा निकाली। हजारों विद्याधरों के प्रभाव को देखकर राजा और बौद्धदासी भी आश्चर्यचकित हुए और जैनधर्म से प्रभावित होकर आनन्दपूर्वक उन्होंने जैनधर्म अङ्गीकार करके अपना कल्याण किया तथा सत्यधर्म प्राप्त कराने के लिए उर्विलरानी का उपकार माना। उर्विलारानी ने उन्हें जैन धर्म के वीतरागी देव - गुरु की Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207