Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
गया, कि अरे! ऐसा राजवैभव और ऐसी 32 रानियों के होने पर भी राजकुमार उनकी ओर देखते ही नहीं। उनका त्याग कर देने के बाद उनका स्मरण भी नहीं करते। आत्मसाधना में अपना चित्त जोड़ दिया है। वाह, धन्य है इन्हें! और मैं एक साधारण स्त्री का मोह भी नहीं छोड़ सकता। अरे! मेरा बारह-बारह वर्ष का साधुपना व्यर्थ गया।
वारिषेणमुनि ने पुष्पडाल से कहा – हे मित्र! अब भी तुझे संसार का मोह हो तो तू यहीं रुक जा और इस वैभव का उपभोग कर! अनादि काल से जिस संसार को भोगते हुए तृप्ति न हुयी, उसे तू अब भी भोगना चाहता है, तो ले, तू इस सबका उपभोग कर। वारिषेणमुनि की बात सुनकर पुष्पडाल अत्यन्त लज्जित हुआ, उसकी आँखें खुल गईं और उसका आत्मा जागृत हो गया।
राजमाता चेलना सब परिस्थति समझ गईं और पुष्पडाल को धर्म में स्थिर करने हेतु बोली – अरे मुनिराज! आत्मा-साधना का ऐसा अवसर बारम्बार प्राप्त नहीं होता; इसलिए तुम अपना चित्त मोक्षमार्ग में लगाओ। यह सांसारिक भोग तो इस जीव ने अनन्त बार भोगे हैं, इनमे किञ्चित् सुख नहीं है; इसलिए इनका मोह छोड़कर मुनिधर्म में अपने चित्त को स्थिर करो। __ वारिषेण मुनिराज ने भी ज्ञान-वैराग्य का सुन्दर उपदेश दिया और कहा कि हे मित्र! अब अपने चित्त को आत्मा की आराधना में दृढ़ करो और मेरे साथ मोक्षमार्ग में चलो। ___ पुष्पडाल ने कहा – प्रभो! आपने मुझे मुनिधर्म से डिगते हुए बचाया है, और सच्चा बोध देकर मोक्षमार्ग में स्थिर किया है; अतः
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