Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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आप सच्चे मित्र हैं। आपने धर्म में स्थितिकरण करके महान उपकार किया है। अब मेरा मन सांसारिक भोगों से वास्तव में उदास होकर आत्मा के रत्नत्रयधर्म की आराधना में स्थिर हुआ है। अब मुझे स्वप्न में भी इस संसार की इच्छा नहीं है। अब तो अन्तर में लीन होकर आत्मा के चैतन्यवैभव की साधना करूँगा।
इस प्रकार प्रायश्चित करके पुष्पडाल फिर से मुनिधर्म में स्थिर हुआ और दोनों मुनि, वन की ओर चल दिए।
(वारिषेण मुनिराज की कथा हमें ऐसी शिक्षा देती है कि - कोई भी साधर्मी-धर्मात्मा कदाचित् शिथिल होकर धर्ममार्ग से डिगता हो तो उसका तिरस्कार न करके, प्रेमपूर्वक उसे धर्ममार्ग में स्थिर करना चाहिए। सर्व प्रकार से उसकी सहायता करनी चाहिए। धर्म का उल्लास जागृत करके, जैनधर्म की महिमा समझाकर या वैराग्य द्वारा उसे धर्म में स्थिर करना चाहिए। तथा अपने आत्मा को भी धर्म में विशेष-विशेष स्थिर करना चाहिए। कैसी भी प्रतिकूलता आये परन्तु धर्म से नहीं डिगना।) •
जहाँ दुःख कभी न प्रवेश रुकता,
वहाँ निवास ही राखिये; सुखस्वरूप निज आत्म को बस,
ज्ञाता होकर झाँकिये ॥
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.