Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
पहुँचे और अपने भाई से - जो कि हस्तिानपुर का राजा था - कहा-अरे, भाई ! तेरे राज्य में यह क्या अनर्थ हो रहा है?
पद्मराजा ने कहा – प्रभो! मैं लाचार हूँ, अभी मेरे हाथ में शासन की बागडोर नहीं है। __ अपने भाई से सारी कहानी सुनकर विष्णुकुमार मुनि ने सात सौ मुनियों की रक्षा के हेतु कुछ समय के लिए मुनिपना छोड़कर एक वामन (ठिगने) ब्राह्मण पण्डित का रूप धारण किया और बलिराजा के पास जाकर अत्यन्त मधुर स्वर में उत्तम श्लोक बोलने लगे।
बलिराजा उनके दिव्य रूप और मधुर वाणी से अत्यन्त प्रभावित हुआ और कहने लगा कि आपने आकर हमारे यज्ञ की शोभा में वृद्धि की है, जो चाहें माँग लें;-ऐसा कहकर बलिराजा ने विद्वान ब्राह्मण का सम्मान किया।
अहा! अचानक मुनिवर, जगत के साथ... उन्हें अपने सात सौ साधर्मियों की रक्षा के हेतु याचक बनना पड़ा। ऐसा है धर्म वात्सल्य! मूर्ख राजा को कहाँ खबर थी कि वह जिन्हें याचना करने को कह रहा था, वे ही मुनिराज उसे धर्म प्रदान करके हिंसा के घोर पाप से छुड़ायेंगे। - ब्राह्मण वेषधारी विष्णुकुमार मुनि ने राजा से तीन डग धरती माँगी। राजा ने प्रसन्न होकर धरती माप लेने को कहा। बस, हो चुका!
राजा ऊपर देखता है इतने में तो विष्णुकुमार ने अपने वामन शरीर के बदले विराट रूप धारण कर लिया। विष्णुकुमार मुनि का विराटस्वरूप देखकर राजा चकित हो गया। उसकी समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है।
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