Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 191
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग -4] मग्न है, अब मैं दीक्षा ग्रहण करके मुनि होऊँगा । ऐसा कहकर एक मुनिराज के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की और आत्मा को साधने में मग्न हो गए । अब, राजमन्त्री का पुत्र पुष्पडाल था, वह बचपन से ही वारिषेण का मित्र था और उसका विवाह अभी कुछ दिन पहले हुआ था; उसकी स्त्री बहुत सुन्दर नहीं थी। एकबार वारिषेण मुनि घूमते-घूमते पुष्पडाल के यहाँ पहुँचे और पुष्पडाल ने विधिपूर्वक आहारदान दिया... इस अवसर पर अपने मित्र को धर्म प्राप्त कराने की भावना मुनिराज को जागृत हुई । आहार करके मुनिराज वन की ओर जाने लगे, विनयवश पुष्पडाल भी उनके पीछे-पीछे गया। कुछ दूर चलने के बाद उसको ऐसा लगा कि अब मुनिराज मुझे रुकने को कहें और मैं घर पर जाऊँ, लेकिन मुनिराज तो चले ही जाते हैं तथा मित्र से कहते ही नहीं कि अब तुम रुक जाओ ! पुष्पडाल को घर पहुँचने की आकुलता होने लगी। उसने मुनिराज को स्मरण दिलाने के लिए कहा कि बपचन में हम इस तालाब और आम के पेड़ के नीचे साथ खेलते थे, यह वृक्ष गाँव से दो-तीन मील दूर है, हम गाँव से बहुत दूर आ गए हैं। - [ 175 यह सुनकर भी वारिषेण मुनि ने उसे रुक जाने को नहीं कहा। अहा ! परम हितैषी मुनिराज, मोक्षमार्ग को छोड़कर संसार जाने कैसे कहें ? मुनिराज की तो यही भावना है कि मेरा मित्र भी मोक्षमार्ग में मेरे साथ ही आये - हे सखा, चल न हम साथ चलें मोक्ष में, छोड़े परभाव को झूलें आनन्द में; Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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