Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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SAGE
४. अमूढ़दृष्टि-अङ्ग में प्रसिद्ध रेवतीरानी की कथा
इस भरतक्षेत्र के बीच में विजयार्द्ध पर्वत स्थित है, उस पर विद्याधर मनुष्य रहते हैं, उन विद्याधरों के राजा चन्द्रप्रभु का मन संसार से विरक्त था, वे राज्यभार अपने पुत्र को सौंपकर तीर्थयात्रा करने के लिए निकल पड़े। वे कुछ समय दक्षिण मथुरा में रहे, वहाँ के प्रसिद्ध तीर्थों और रत्नों के जिनबिम्बों से शोभायमान जिनालय देखकर उन्हें आनन्द हुआ। उस समय मथुरा में गुप्ताचार्य नाम के महा मुनिराज विराजमान थे, वे विशिष्टज्ञान के धारी थे तथा मोक्षमार्ग का उत्तम उपदेश देते थे। चन्द्रराजा ने कुछ दिनों तक मुनिराज का उपदेश श्रवण किया तथा भक्तिपूर्वक उनकी सेवा की।
कुछ समय बाद उन्होंने उत्तर मथुरानगरी की यात्रा को जाने का विचार किया – कि जहाँ से जम्बूस्वामी मोक्ष को प्राप्त हुए हैं तथा जहाँ अनेक मुनिराज विराजमान थे; उनमें भव्यसेन नाम के मुनि भी प्रसिद्ध थे। उस समय मथुरा में वरुण राजा राज्य करते थे, उनकी रानी का नाम रेवती देवी थी।
चन्द्रराजा ने मथुरा जाने की अपनी इच्छा गुप्ताचार्य के समक्ष प्रगट की और आज्ञा माँगी तथा वहाँ के संघ को कोई सन्देश ले जाने के लिए पूछा।
तब श्री आचार्यदेव ने सम्यक्त्व की दृढ़ता का उपदेश देते हुए कहा कि आत्मा का सच्चा स्वरूप समझनेवाले सम्यग्दृष्टि जीव, वीतराग अरहन्तदेव के अतिरिक्त अन्य किसी को देव नहीं मानते।
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