Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
[167
का महाभाग्योदय हुआ है कि कल साक्षात् ब्रह्माजी ने दर्शन दिए और आज विष्णुभगवान पधारे हैं।
राजा को ऐसा लगा कि आज जरूर रानी चलेगी, इसलिए उन्होंने उमङ्गपूर्वक रानी से वह बात की – परन्तु रेवती जिसका नाम, वीतरागदेव के चरण में लगा हुआ उसका चित्त जरा भी चलायमान नहीं हुआ। श्रीकृष्ण आदि नौ विष्णु (अर्थात् वासुदेव) होते हैं, और वे नौ तो चौथे काल में हो चुके हैं। दसवें विष्णुनारायण कभी हो नहीं सकते, इसलिए जरूर यह सब बनावटी है, क्योंकि जिनवाणी कभी मिथ्या नहीं होती। इस तरह जिनवाणी में दृढ़ श्रद्धापूर्वक, अमूढदृष्टि अङ्ग से वह किञ्चित् विचलित नहीं हुई।
तीसरे दिन फिर एक नयी बात उड़ी। ब्रह्मा और विष्णु के पश्चात् आज तो पार्वतीदेवीसहित जटाधारी शंकर महादेव पधारे हैं। गाँव के लोग उनके दर्शन को उमड़ पड़े। कोई भक्तिवश गए, तो कोई कौतूहल वश गए, परन्तु जिसके रोम-रोम में वीतराग देव का निवास था, ऐसी रेवतीरानी का तो रोम भी नहीं हिला, उन्हें कोई आश्चर्य न हुआ, उन्हें तो लोगों पर दया आयी कि अरे रे! परम वीतराग सर्वज्ञदेव, मोक्षमार्ग को दिखानेवाले भगवान, उन्हें भूलकर मूढ़ता से लोग इस इन्द्रजाल से कैसे फँस रहे हैं। वास्तव में भगवान अरहन्तदेव का मार्ग प्राप्त होना जीवों को बहुत ही दुर्लभ है। ___ अब चौथे दिन मथुरा नगरी में तीर्थङ्कर भगवान पधारे, अद्भुत समवसरण की रचना, गन्धकुटी जैसा दृश्य और उसमें चतुर्मुखसहित तीर्थङ्कर भगवान। लोग तो फिर से दर्शन करने के लिए दौड़ पड़े।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.