Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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अमूढदृष्टि को! हे माता! आपके सम्यक्त्व की प्रशंसापूर्वक श्री गुप्ताचार्य भगवान ने आपको धर्मवृद्धि का आशीर्वाद भेजा है। ____ मुनिराज के आशीर्वाद की बात सुनते ही रेवतीरानी को अपार हर्ष हुआ। हर्ष-विभोर होकर उन्होंने उस आशीर्वाद को स्वीकार किया और जिस दिशा में मुनिराज विराजते थे, उस ओर सात डग चलकर परमभक्तिपूर्वक मस्तक नमाकर मुनिराज को परोक्ष नमस्कार किया।
विद्याधर राजा ने रेवतीमाता का बड़ा सम्मान किया और उनकी प्रशन्सा करके सारी मथुरा नगरी में उनकी महिमा फैला दी। राजमाता की ऐसी दृढ़ श्रद्धा देखकर और जिनमार्ग की ऐसी महिमा देखकर मथुरा नगरी के कितने ही जीव कुमार्ग को छोड़कर जैनधर्म के भक्त बने और अनेक जीवों की श्रद्धा दृढ़ हुई। इस प्रकार जैनधर्म की महान प्रभावना हुई।
[बन्धुओं! यह कथा हमसे ऐसा कहती है कि वीतराग परमात्मा अरहन्तदेव का सच्चा स्वरूप पहिचानो और उनके अतिरिक्त अन्य किसी भी देव को – साक्षात् ब्रह्मा-विष्णु-शंकर समान दिखते हों, तथापि उन्हें नमन न करो। जिनवचन से विरुद्ध किसी बात को न मानो। भले ही सारा जगत अन्यथा माने और तुम अकेले रह जाओ, तथापि जिनमार्ग की श्रद्धा नहीं छोड़ना।] .
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