Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
उदायनराजा एक मुनिराज को भक्तिपूर्वक आहारदान ने लिए पड़गाहन कर रहे हैं पधारो, पधारो, पधारो ! रानी सहित उदयनराजा नवधाभक्तिपूर्वक मुनिराज को आहारदान देने लगे ।
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अरे, यह क्या ? कई लोग तो वहाँ से दूर भागने लगे और बहुत से मुँह के आगे कपड़ा लगाने लगे क्योंकि इन मुनि के कालेकुबड़े शरीर में भयङ्कर कुष्ठ रोग था और उससे असह्य दुर्गन्ध निकल रही थी; हाथ-पैर की उँगलियों से पीप निकल रही थी ।
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- परन्तु राजा को इसका कोई लक्ष्य नहीं था । वह तो प्रसन्नचित्त होकर परम भक्तिपूर्वक एकाग्रता से मुनि को आहारदान दे रहे थे, और अपने को धन्य मान रहे थे – कि अहा ! रत्नत्रयधारी मुनिराज का हमारे घर आगमन हुआ। उनकी सेवा से मेरा जीवन सफल हुआ है।
इतने में अचानक मुनि का जी मचलाया और उल्टी हो गयी; और वह उल्टी राजा-रानी के शरीर पर गिरी। दुर्गन्धित उल्टी गिरने पर भी राजा-रानी को न तो ग्लानि उत्पन्न हुयी और न मुनिराज के प्रति रञ्चमात्र तिरस्कार ही आया; बल्कि अत्यन्त सावधानी से वे मुनिराज के दुर्गन्धमय शरीर को साफ करने लगे और विचारने लगे कि अरे रे ! हमारे आहारदान में जरूर कोई भूल हो गयी है, जिसके कारण मुनिराज को यह कष्ट हुआ, हम मुनिराज की पूरी सेवा न कर सके ।
अभी तो राजा ऐसा विचार कर रहे हैं कि इतने में वे मुनि अचानक अदृश्य हो गए और उनके स्थान पर एक देव दिखायी दिया। अत्यन्त प्रशंसापूर्वक उसने कहा हे राजन्! धन्य है
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
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