Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 170
________________ www.vitragvani.com 154] [ सम्यग्दर्शन : भाग-4 आ पड़ती है... परन्तु अब वीतराग धर्म का मैंने शरण लिया है, उसके प्रताप से मैं शीलव्रत से डिग नहीं सकती । अन्त में देव भी मेरे शील की रक्षा करेंगे। भले प्राण जायें किन्तु मैं शील को नहीं छोडूंगी। उसने भील से कहा: ‘अरे दुष्ट ! अपनी दुबुद्धि को छोड़ ! तेरे धन-वैभव से मैं कभी ललचानेवाली नहीं हूँ। तेरे धन-वैभव को मैं धिक्कारती हूँ !' अनन्तमयी ऐसी दृढ़ बात सुनकर भील राजा क्रोधित हो गया और निर्दयतापूर्वक उससे बलात्कार करने को तैयार हो गया.... इतने में ऐसा लगा कि मानो आकाश फट गया हो और एक महादेवी वहाँ प्रगट हुई । उस देवी - तेज को वह दुष्ट भील सहन न कर सका, और उसके होश - हवाश उड़ गये । वह हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगा। देवी ने कहा - यह महान शीलव्रती सती है, इसे जरा भी सतायेगा तो तेरी मौत हो जावेगी । और अनन्तमती पर हाथ फेरकर कहा - बेटी ! धन्य है तेरे शील को; तू निर्भय रहना । शीलवान सती का बाल बाँका करने में कोई समर्थ नहीं है। ऐसा कहकर वह देवी अदृश्य हो गयी । वह भील भयभीत होकर अनन्तमती को लेकर नगर में एक सेठ के हाथ बेच आया। उस सेठ ने पहले तो यह कहा कि मैं अनन्तमती को उसके घर पहुँचा दूँगा; ... परन्तु वह भी उसका रूप देखकर कामान्ध हो गया और कहने लगा - हे देवी! अपने हृदय में तू मुझे स्थान दे और मेरे इस अपार धन-वैभव को भोग । उस पापी की बात सुनकर अनन्तमती स्तब्ध रह गयी । अरे ! I Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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