Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 173
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [157 वहाँ आ गयी और दुष्ट राजा को शिक्षा देते हुए कहा कि खबरदार, भूलकर भी इस सती को हाथ लगाना नहीं। सिंहराज तो देवी को देखते ही श्रृंगाल जैसा हो गया, उसका हृदय भय से काँप उठा; उसने क्षमा माँगी और तुरन्त ही सेवक को बुलाकर अनन्तमती को मानसहित जंगल में छोड़ आने के लिए आज्ञा दे दी। ___ अब अनजान जंगल में कहाँ जाना चाहिए? इसका अनन्तमती को कुछ पता नहीं था; इतने-इतने उपद्रवों में भी अपने शीलधर्म की रक्षा हुई—ऐसे सन्तोषपूर्वक, घोर जङ्गल के बीच में पञ्च परमेष्ठी का स्मरण करती हुयी आगे बढ़ी। उसके महाभाग्य से थोड़ी ही देर में आर्यिकाओं का एक संघ दिखायी पड़ा, वह अत्यन्त आनन्दपूर्वक आर्यिका माता की शरण में गयी। अहा! विषयलोलुप संसार में जिसको कहीं शरण न मिली, उसने वीतरागमार्गी साध्वी की शरण ली; उसके आश्रय में पहुँचकर अश्रुपूर्ण आँखों से उसने अपनी बीती कथा कही। वह सुनकर भगवती आर्यिका माता ने वैराग्यपूर्वक उसे आश्वासन दिया और उसके शील की प्रशंसा की। भगवती माता की शरण में रहकर वह अनन्तमती शान्तिपूर्वक अपनी आत्मसाधना करने लगी। * * * अब इस तरफ चम्पापुरी में जब विद्याधर, अनन्तमती को उड़ाकर ले गया, तब उसके माता-पिता बेहद दु:खी हुए। पुत्री के वियोग से खेदखिन्न होकर चित्त को शान्त करने के लिए वे तीर्थयात्रा करने निकले और यात्रा करते-करते तीर्थङ्कर भगवन्तों को जन्मपुरी अयोध्या नगरी में आ पहुँचे। प्रियदत्त के साले (अनन्तमती के मामा) जिनदत्त सेठ यहीं रहते थे; वहाँ आते ही आँगन में एक Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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