Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
116]
[सम्यग्दर्शन : भाग-4
परभव में भी मेरे साथ रहे। इस लोक के किसी भी पदार्थ की चिन्ता या भावना उसे नहीं है। इसलिए वीतराग भगवान से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! परलोक के पथिक ऐसे मुझे सम्यक्बोधि -समाधिरूप पाथेय प्रदान करो। कब तक? मोक्षपुरी तक पहुँचू तब तक।.
रे आत्मा! तेरे जीवन में उत्कृष्ट वैराग्य के जो प्रसङ्ग बने हों और वैराग्य की सितार जब झनझना उठी हो... ऐसे प्रसङ्ग की वैराग्यधारा को भलीभाँति बनाये रखना, बारम्बार उसकी भावना करना। कोई महान प्रतिकूलता, अपयश इत्यादि उपद्रव-प्रसङ्ग में जागृत हुई वैराग्यभावना को याद रखना। अनुकूलता में वैराग्य को भूल मत जाना।
और कल्याणक के प्रसङ्गों को, तीर्थयात्रा इत्यादि प्रसङ्गों को, धर्मात्मा के सङ्ग में हुई धर्मचर्चा इत्यादि कोई अद्भुत प्रसङ्गों को, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय सम्बन्धी जागृत हुई किन्हीं ऊर्मियों को तथा तेरे प्रयत्न के समय धर्मात्मा के भावों को याद करके बारम्बार तेरे आत्मा को धर्म की आराधना में उत्साहित करना।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.