Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
निरन्तर... भानेयोग्य.... भावना
मैं जाननहार हूँ - ऐसे जाननहार तत्त्व का लक्ष्य रखना।
देह, वह मैं नहीं; देह मेरी नहीं; मैं तो देह से भिन्न जाननहार हूँ, जाननहार में उलझन नहीं है।
शरीर में व्याधि है परन्तु ज्ञान में व्याधि नहीं। मुझमें व्याधि नहीं, मैं तो व्याधि का जाननेवाला हूँ। शरीर में दबाव पड़े परन्तु ज्ञान में दबाव नहीं।
ज्ञान तो धीर-शान्त-जाननहार है-ऐसे आत्मा का लक्ष्य रखना।
मैं देह के साथ एकमेक होकर कभी रहा नहीं। मैं तो मेरे ज्ञान के साथ ही एकमेक हूँ। कभी भी मेरे ज्ञान से छूटकर मैं देहस्वरूप हुआ नहीं। देह में रहा होने पर भी, देह से भिन्न ही हूँ।
देह का वियोग होने पर भी, मेरे ज्ञानतत्त्व का कभी नाश नहीं होता।
रोगादि शरीर में होते हैं, परन्तु शरीर 'मैं' नहीं। मैं तो अतीन्द्रियज्ञान हूँ, मेरे ज्ञान में रोगादि का प्रवेश नहीं।
अहो! यह ज्ञानतत्त्व कैसा! – कि चाहे जितने व्याधि इत्यादि प्रसङ्ग के समय भी जिसके लक्ष्य से शान्ति रहे... जिसके लक्ष्य से सर्व प्रकार की उलझन टल जाये।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.