Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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अहो! ऐसा ज्ञानमय आनन्दतत्त्व!! वह मैं ही हूँ।
-ऐसा लक्ष्य रखनेवाले को मृत्यु के समय उलझन नहीं होती, उस समय भी उसे चैतन्य की जागृति रहती है। भिन्नता की ऐसी भावना जीवन में निरन्तर भाने योग्य है।
(एक वैराग्यप्रसङ्ग पर पूज्य गुरुदेवश्री सुना हुआ।)
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वह जीवन धन्य है... अहो! इस अशरण संसार में जन्म के साथ मृत्यु लगी ही है। आत्मा की सिद्धि न सधे तब तक जन्म-मरण का चक्र चला ही करेगा... ऐसे अशरण संसार में सन्तों-ज्ञानियों का ही शरण है... जो जीवन सन्तों की शरण में व्यतीत हो और पूज्य गुरुदेव ने बतलाये हुए चैतन्यशरण को लक्ष्यगत करके उसके दृढ़ संस्कार आत्मा में पड़ जाये... वह जीवन धन्य है... और जीवन में यही करनेयोग्य है।
- बहिनश्री चम्पाबेन
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.