Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
[33
उसकी यह बात है। इस सम्यक्श्रद्धारूपी भूमिका के बिना श्रावकपना या मुनिपना कभी सच्चा नहीं होता।अभी वस्तुस्वरूप क्या है, यह समझे बिना उतावला होकर बाह्य त्याग करने लगे और स्वयं को मुनिपना इत्यादि मान ले, उसे तो धर्म की विधि की अथवा धर्म के क्रम की खबर नहीं है। ____ जिसने अन्तर में अपने आत्मस्वभाव का भान किया है, उसे वह भान सदा वर्ता ही करता है। आत्मा के विचार में हो, तब ही सम्यग्दर्शन रहे और दूसरे विचार में हो, तब सम्यग्दर्शन चला जाये-ऐसा नहीं है। समकिती को शुभ-अशुभ उपयोग के समय भी आत्मभान विस्मृत नहीं होता, सम्यग्दर्शन छूटता नहीं तथा दूषित नहीं होता; प्रतिक्षण उसे सम्यक्श्रद्धा-ज्ञान वर्ता ही करते हैं-आत्मा ही उसरूप परिणमन गया है। आत्मा का भान होने के पश्चात् उसे रटना नहीं पड़ता – याद नहीं रखना पड़ता, परन्तु आत्मा में उसका सहज परिणमन हो जाता है, नींद में भी आत्मभान विस्मृत नहीं होता। इस प्रकार धर्मी को चौबीसों घण्टे सम्यग्दर्शनरूप धर्म हुआ ही करता है। ऐसा आत्मभान प्रगट करना ही जीवन में सर्व प्रथम करनेयोग्य है। ____ यह तो आत्मा की मुक्ति प्राप्त हो वैसी बात है। इसे समझने के लिये अन्तर में होश और उत्साह चाहिए। पैसे में सुख नहीं है, तथापि जिसे पैसे का प्रेम है, वह पैसा प्राप्त होने की बात कैसे होश से सुनता है! तो आत्मा को समझने के लिये अपूर्व उत्साह से आत्मा की गरजपूर्वक अभ्यास करना चाहिए। सतसमागम से परिचय किये बिना उतावल से यह
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.