Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग -4]
[ 73
क्योंकि वहाँ के वातावरण में वीतरागता ही घुलती है। संसार में तो मोह ही घुटता है; सत्संग में, मन में से संसार के विचार छूटकर कोई अलग ही शान्ति का अनुभव होता है। संसार से संतृप्त आत्मा को सच्चे वैराग्यरस द्वारा सिंचन करके ज्ञानियों के पन्थ में आगे बढ़ना - यही इस संसार से छूटने का मार्ग है । सन्तों ने सत्य ही कहा है कि
सुख की सहेली है अकेली उदासीनता; अध्यात्म की जननी, रही उदासीनता ॥
(भाईश्री धर्मचन्द नरभेराम कमानी के स्वर्गवास प्रसंग पर लिखा हुआ यह वैराग्य पत्र आप पढ़ रहे हैं।)
★ गुरुदेव वैराग्य से कहते हैं कि अरे ! इस संसार में वैराग्य के ऐसे प्रसंग बना ही करते हैं । कर्मरूपी शत्रु ने जीव को हैरान करने के लिये यह शरीररूप पिंजरा बनाया है। इस पिंजरे में बन्द रहना जीव को कैसे रुचता होगा ? जीव स्वयं को भूलकर इस पिंजरे को ही अपना स्वरूप मान बैठा है। इसलिए पिंजरे से जीव पृथक् पड़ने पर मिथ्या रीति से दुःखी होता है।
★ हे जीव ! तू विचार तो कर कि देह का पिंजरा छूटने से तेरे आत्मा का क्या कुछ कम हो गया ? यहाँ या अन्यत्र चाहे जहाँ आत्मा अपने अनन्त गुणों - ज्ञान आनन्दसहित ही सदा विराज रहा है । उसका अस्तित्व कभी मिट नहीं जाता अथवा उसका कोई गुण कम नहीं होता, फिर खेद किसका ? मात्र मोह का। मोह का दुःख, मरण से भी अधिक है।
★ मुमुक्षु जीव को विचारना चाहिए कि जगत् में मृत्यु इत्यादि
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.