Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
वास्तविक ज्ञायक वीर
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सन्त श्रुतज्ञान की पुकार द्वारा केवलज्ञान को बुलाते हैं।
चैतन्य साधना के पन्थ में आरूढ़ साधक को जगत की कोई प्रतिकूलता विचलित नहीं कर सकती अथवा उलझा नहीं सकती। निज आत्मा को दृष्टि में लेकर, उसमें लीनता द्वारा जिसने शान्तदशा प्रगट की है, उसकी शान्ति को जगत की महा संवर्तक-वायु भी डिगा नहीं सकती। अभी पंचम काल में प्रतिकूलता के बहुत प्रसंग होने से उनके समाधान के लिये रुकना पड़ता है, इसलिए अभी आत्मा की साधना नहीं हो सकती - ऐसा कोई कहे, तो कहते हैं कि अरे भाई! ऐसा नहीं है; अभी भी प्रतिकूलता के ढेर के बीच में भी आत्मा की पवित्र आराधनावाले और जातिस्मरणज्ञानवाले आत्मा यहाँ नजरों से दिखते हैं; जगत की कोई प्रतिकूलता उन्हें आराधना में बाधक नहीं है। जो अन्तर्मुख होकर चैतन्य गुफा में प्रवेश कर गये हैं, उन्हें चैतन्य गुफा में फिर प्रतिकूलता कैसी? कोई प्रतिकूलता का भार नहीं कि चैतन्य में प्रवेश कर सके। चैतन्य सिंह की शूरवीरता के समक्ष प्रतिकूलता तो नहीं टिकती; परभाव भी नहीं टिक सकते
'बहिरभाव स्पर्शे नहीं आतम को,
वास्तविक वह ज्ञायक वीर गिनाये जो।' चैतन्य सिंह ज्ञायक वीर अपने पराक्रम की वीरता से जहाँ जागृत हुआ, वहाँ उसकी पर्याय के विकास को कोई रोक नहीं सकता। अहो! सन्तों ने आत्मशक्ति के ऐसे रहस्य खोलकर गजब
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