Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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धर्मात्मा की ज्ञानचेतना
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इसमें ज्ञानी के हृदय का रहस्य भरा है । ज्ञानी के अन्तर के आत्मभाव समझने के लिये, उनकी परिणति पहचानने के लिये, और अपने में वैसे भाव प्रगट करने के लिये 'धर्मात्मा की ज्ञानचेतना' का मनन आत्मार्थी जीवों को बहुत उपयोगी होगा ।
'ज्ञानचेतना', वह धर्मात्मा का चिह्न है । ज्ञानचेतना द्वारा धर्मी
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अपने को निरन्तर शुद्धस्वरूप अनुभव करता है । ज्ञानचेतना अपने स्वभाव को स्पर्श करनेवाली है । अमुक शास्त्र आवे तो ज्ञानचेतना कहलाये - ऐसा नहीं है परन्तु अपने शुद्धस्वभाव को स्पर्श करे - अनुभव करे, उसका नाम ज्ञानचेतना है । ज्ञानचेतना का काम अन्दर में समाहित होता है । अन्तर में ज्ञानस्वभाव को स्पर्श किये बिना शास्त्रादि का चाहे जितना जानपना हो, तथापि उसे ज्ञानचेतना नहीं कहते, क्योंकि वह तो राग को स्पर्श करता है - राग को अनुभव करता है।
धर्म की शुरुआत या सुख की शुरुआत 'ज्ञानचेतना' से होती है । ज्ञानचेतना, अर्थात् शुद्ध आत्मा को अनुभव करनेवाली चेतना; उसमें रत्नत्रय समाहित है । उस ज्ञानचेतना का सम्बन्ध शास्त्र के पठन के साथ नहीं; ज्ञानचेतना तो अन्तर्मुख होकर आत्मा के साक्षात्कार का कार्य करती है । ज्ञानचेतना के बल से ज्ञानी अल्प काल में ही केवलज्ञान को बुला लेता है ।
ज्ञानचेतना का कार्य विकल्प या वाणी नहीं है। कोई पूछे कि ज्ञान चेतना प्रगटे, इसीलिए समस्त शास्त्रों के अर्थ हल करना आ
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