Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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स्वानुभव के चिह्नरूप ज्ञानचेतना ज्ञानी के हृदय की बात
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संवत् 1992 अर्थात् *आज से लगभग 35 वर्ष पहले की बात है। उस समय गुरुदेव के समक्ष स्वानुभव की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण चर्चा हुई, कितनी ही बार प्रसन्नता से और बहुत गम्भीर भाव से उस चर्चा का प्रसंग याद करके जब गुरुदेव सुनाते हैं, तब जिज्ञासु के रोम-रोम पुलकित होकर ज्ञानी के स्वानुभव के प्रति उल्लसित हो जाते हैं।
उस चर्चा में गुरुदेव ने पूछा था कि ज्ञानचेतना का फल क्या ? ज्ञानचेतना खिलती है, इसलिए सब शास्त्रों के अर्थ का हल कर देती है न ?
उत्तर : ज्ञानचेतना तो अन्तर में अपने आत्मा को चेतनेवाली है । ज्ञानचेतना के फल में शास्त्र का हल होने लगे- ऐसा कोई फल नहीं है परन्तु आत्मा के अनुभव का हल प्राप्त हो जाये - ऐसी ज्ञानचेतना है। ज्ञानचेतना का फल तो यह है कि अपने आत्मा को चेत ले, शास्त्र पठन के आधार से ज्ञानचेतना का माप नहीं है।
ज्ञानचेतना, अर्थात् शुद्धात्मा को अनुभव करनेवाली चेतना; वह चेतना, मोक्षमार्ग है । उस ज्ञानचेतना का सम्बन्ध शास्त्र-पठन के साथ नहीं है; ज्ञानचेतना तो अन्तर्मुख होकर आत्मा के साक्षात्कार का कार्य करती है । कम-अधिक जानपना हो, उसके साथ सम्बन्ध नहीं है परन्तु ज्ञानानन्दस्वभाव के सन्मुख होने से ज्ञानचेतना प्रगट
विक्रम संवत् २०२७ का प्रवचन है; इस दृष्टि से ३५ वर्ष पूर्व की बात है - ऐसा समझना चाहिए। Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.