Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
होती है, उस ज्ञानचेतना में आत्मा निजानन्द को अनुभव करता हुआ अत्यन्त शुद्धरूप से प्रकाशित होता है। ऐसी ज्ञानचेतना चौथे गुणस्थान से शुरु होती है। ज्ञानी ऐसी ज्ञानचेतना द्वारा केवलज्ञान को बुलाता है।
(इसमें ज्ञानी का हृदय भरा है। इसके भाव स्वानुभव के लिये बहुत गहराई से मननीय है। गुरुदेव इस चर्चा की बहुत महिमा करते हैं।)
समयसार कलश ३२३-३२४ इत्यादि के प्रवचनों में से
इस सम्बन्धी स्पष्टीकरण दिया जाता है।
* मैं ज्ञानस्वभाव हूँ - ऐसा जो वास्तविक निर्णय है, उसकी सन्धि ज्ञानस्वभाव के साथ है; विकल्प के साथ उसकी सन्धि नहीं है। ___ज्ञान और विकल्प दोनों निर्णय काल में होने पर भी, उसमें से ज्ञानस्वभाव के साथ सन्धि का काम ज्ञान ने किया है; विकल्प ने नहीं।
★ ज्ञानस्वभाव के साथ सन्धि करके, उसके लक्ष्य से प्रारम्भ ज्ञानधारा ज्ञान के अनुभव तक पहुँच जायेगी।
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