Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
[75
- चेत... चेत... जीव चेत! - विभावों से विरक्त होकर चैतन्य के आनन्द का स्वाद ले
(वैराग्य प्रेरक प्रवचन-कार्तिक शुक्ल 14) अरे जीव! देह से भिन्न तेरे चैतन्य की सम्हाल तूने कभी नहीं की, यह देह तो रजकण का पिण्ड है; इसके रजकण तो रेत की तरह जहाँ-तहाँ बिखर जायेंगे
रजकण तेरे भटकेंगे जैसे भटकती रेत; फिर नरभव पाये कहाँ ? चेत... चेत... नर चेत॥
रे जीव! तू चेतकर जागृत हो। आत्मा को जाननेवाले आठ -आठ वर्ष के राजकुमार इस संसार से वैराग्य प्राप्त करके माता के समीप जाकर कहते हैं कि हे माता! आज्ञा दे... 'अलख जगाऊँ जंगल में अकेला!' जंगल में जाकर मुनि होकर आत्मध्यान में मस्त रहूँ! ____ माता कहती हैं – अरे बेटा ! तू तो अभी छोटा है न! अभी आठ ही वर्ष की तेरी उम्र है न!
तब पुत्र कहता है कि-माता ! देह छोटी ही परन्तु इतना तो मैं जानता हूँ कि यह देह तो संयोगी चीज है, वह मैं नहीं; मैं तो अविनाशी चैतन्य हूँ, मेरे चैतन्य के आनन्द का स्वसंवेदन करके उस आनन्द को साधने के लिये मैं जाता हूँ। इसलिए हे माता! तू मुझे आज्ञा दे। इस असार संसार में मुझे अब कहीं चैन नहीं पड़ता। यह राजमहल अब सूने लगते हैं। इस प्रवृत्ति के परिणामों से अब मैं थक गया हूँ। अब तो आनन्दस्वरूप में रमणता करने की धुन जगी है; इसलिए मैं मुनि होकर आत्मा को साधकर केवलज्ञान प्राप्त करूँगा-इसलिए आनन्द से आज्ञा दे।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.